सूरदास और नरसिंह मेहता : तुलनात्मक अध्ययन | Surdas Aur Narsingh Mehata Tulnatmak Adhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जे सूरदास भौर नरमिह मेहता : तुलनात्मर प्रयरत
जद्धपुम भौर्ष वे दस्वार मे रहने वाले मैगस्थनीज से, डिलब्रा समय ईसा के
३०० वें पूं का मान गया है, एड बॉव्य लिंसा है जिसता तापय यह है हि मणुरा
और बृष्णपुर भे हृष्ण को उपासना होती थी । 'महानाशपण उपनिषद् म॑, गा
तीसरी दनाहरी दे लगमय सिपा गया, पहं बताया गया है कि बासुदेव शब्द का प्रयोग
विष्णु वे स्थान पर पर्यायवा वी ये रुप मे हुफ्रा है! झवएद दृष्ण शोर विष्णु मे भेद
नहीं समझता चाहिए । परतजलि वे महाभादए मे, जो ईसा वे १५० वपं पूर्व लिंग
यया, वासुदेव वा उत्लेस देवता वे रुप में मिलता है । सर भाइरवर ने इस सम्बाध
मे एक उल्लेसनीय मिद्धार्न स्थिर किया है। दे वामदेव भौर कृष्ण में भन्तर देखते
हैं । उनता महू मत है कि बाबुदेव मूल मनुष्य हो थे, सातदत या बृष्णि जाति के
थे और ईसा वे ६०० वर्ष पूर्व का उतका समय है। जीवन-भर इन्होंने एक्डवरवाद
का प्रचार किया। उनके देहोत्समे वे बुद्ध समय पश्चात् लोगों ने उन्हें उस देवता के
साथ एक्मरूप बर दिया जिसका वे प्रचार यरते थे। इसी प्रकार पहले वे नारायटा
के माय, वाद भें विध्ण के साथ शोर पम्त में मध्रा के गोपाल हृष्ण के साथ एक
रूप मर दिये गये ।२ इस सिद्धान्त वे! झनुसार इस प्रहार কী भक्त मरने बालों से
ही 'भगवदूगीता” को जन्म दिया जिसमें कृष्ण को सगवानु के सवार के रुप मे व्शित
কিনা মনা ।
ग्रौयमेंन, विन्टरनित्ज झौर गा६्वें इस सिद्धात से सहमत हैं ग्रौर बडी दुटतों के
साथ इसका समर्थन करते हैं। परस्तु हापकिन्स तथा कौय इस सिद्धान्त को प्रति
हासिक और ग्रतएव निरषंक़ सिद्ध करना चाहते है। ग्रधिकाइ विद्धान इन्ही के पक्ष
में हैं। डा० रामकुमार वमा ने झपन हिन्दी साहित्य का ग्रालोचनात्मक इनिहान
नामक ग्रन्थ में हृष्ण और वासुदेव के एक्त्व के सम्बन्ध मे निम्न प्रकार स्लें प्रशाश
डाला है -
*पुष्णु एक वैदिक ऋषि का नाम था, जिसने ऋ्रग्वद के झच्टम मडल वी रचना
फी थी | वह उमम भपना माम कृष्ण लिखता है। अनुक्षमणिका জলন্ক ওলি সানিবর
नाम देता है | इसक्ते वाद “छादोग्य उपनिषद्” म दृष्ण दवकी के पुत्र के रूप में ऊप-
स्थित किये जाते हैं । वे घोर आविर्स के चिप्य हैं 1.,,यदि छृष्ण भी সানিশেঘ লী
(२) बानग पर् निनङ+ शगावारदहन्य , पृष ५४९०९४७ ॥
(३) टार साय तपस, पूत ह्य ভাতে णी फट एक्शन इस
पृष्ठ र४ 1
२ & कापृणाता बाप त्र 7 (प्लव, नकट কও 0
“ © फत् 1 पृष्ठञह ।
२ ठा रामकुसार वर्मा, 'हिन्दा सांद्वित्य का भालोचना मक इतिहासः पृष्ठ 78२ ।
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