साहित्य प्रभाकर | Sahitya Prabhkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ग) महाकवि सूख्यमल मिश्रण तो अपने समय के भद्वितीय कवि थे। व्याकरण, न्याय और साहित्यादि जिपयों में वे एक ही थे] सस्त, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची भौर नज इन षड्‌ भाषां के श्रकार्ड विद्धान्‌ थे। जनश्रुति है कि २०-२५ वर्ष की अवस्था में ही ये पूर्ण भाशु कबि हो गए थे। काव्य-रचना ऐसी शीघ्रता से करते थे कि तेज लिखनेयाले दो सुलेखक भी वड़ी कठिनाई से लिख पाते थे। अपने आश्रयदाता के कहने पर इन्होंने उनके वंश का इतिहास ' बश भास्कर! नामक अन्य में काव्य-बद्ध करना आरस्म किया और लिखने के पहले ही यह तय कर लिया कि जिसके गुण भौर दोप जेसे उदरे, उनका उख में ख़तंत्रता पूर्वक वैसा ही करूँगा। इन्होंने किया भो ऐसा ही--आश्रयदाता के पूर्वजों में जो रण- भीरु हुआ उसकी भीझरुता का जैसा सच्चा चित्रण और करु आलोचन इन्होने जेखी निर्भीकता के साथ किया है, वैसा शायद्‌ ही किसी कब्र ने अपने आश्रयदाता के बंश्-त्रणन में किया होगा । वत्तमान आश्रयदाता के गुण-दोषों की आलोचना के समय उनके आपत्ति करने पर इन्होंने रचना ही बन्द कर दी। अथ- लोम-बश मिथ्या-प्रशंसा करने के ये अश्यासी नहीं थे। इसलिये इन्होंने रोप-प्रसाद को तनिक भी परवाह नहीं की | इनका “वंश भास्कर! अन्ध सच्चा और प्रामाणिक माना जाता है | इनकी विलक्षण काव्य-शक्ति का परिचय इनके श्वश्च भास्करा से भटी माति ख्गता है। पसे उदुभर महाकवि




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