महादेवी काव्य परिशीलन | Mahadevi Kavya Parishilan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( नव )
मेरे मन बाल शिखी म
है संगीत मधुर जाता बन।
आकाश में तथा कलियों में नूतन लज्जा के कारण व्यक्त अरुणिमा से
उन्हें रोमांच हो आता रहा |
जो नव ভাজা जाती भर
नभ में कलियों में लाली
चह दु पुलको च मरी
&लकाती जीवन-प्याली ॥
उनके लिये--
“स्मित लते प्रभात आता नित
दीपके दे सन्ध्या जातीः
दिन दलता सोना बरसा
निशि मोती दे मुस्काती॥
अनुभव-परिधि के भीतर कवयिन्नी को सुख ओर दुःख दोनो
दिखाई पड़े, वेभव और अतुल्ल विषाद के दशन हुये। एक ओर तो
'अकृति की चिरयोवन-सुषमा, जिसरे/ नीले कमलों पर हँसते हुये हिस-
हरक, सौरभ पीकर मद-मस्त पवन, पराग श्रौर मधु से पूं वसन्तकी
छाया, करन्द-पगी केसर पर बेदी हदं परियां, नूतन किसलय के सले
में कूलता अलि-शिशु, असीम आँगन में ज्गमग जलने वाली (तारों की)
दीवाद्ली, जल की कक्ककल में घुलता हुआ विहगों का कलरव ओर
अम्लान हसी हे। दूसरी ओर सुराई पक्षको से गिरत इये भासू-कण,
दुःख के र्ट पीती हे ठण्डी सोसि, सन्तापो स छुलसे इए प्राणं का
` पतर, ङर-पिजर में पड़ा कण-कण को तरसता हुआ जीवन-शुक, पत्थरों
' में मसले हुये फूलों सा शेशव, अनजान में नष्ट होता हुआ प्राण, निर्निः
मेष नयनों वाक्नो चिन्ता और आँसुओं का अक्ययकोष लिये जजर सानव-
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