महादेवी काव्य परिशीलन | Mahadevi Kavya Parishilan

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Mahadevi Kavya Parishilan by भागीरथी दीक्षित - Bhagirathi Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( नव ) मेरे मन बाल शिखी म है संगीत मधुर जाता बन। आकाश में तथा कलियों में नूतन लज्जा के कारण व्यक्त अरुणिमा से उन्हें रोमांच हो आता रहा | जो नव ভাজা जाती भर नभ में कलियों में लाली चह दु पुलको च मरी &लकाती जीवन-प्याली ॥ उनके लिये-- “स्मित लते प्रभात आता नित दीपके दे सन्ध्या जातीः दिन दलता सोना बरसा निशि मोती दे मुस्काती॥ अनुभव-परिधि के भीतर कवयिन्नी को सुख ओर दुःख दोनो दिखाई पड़े, वेभव और अतुल्ल विषाद के दशन हुये। एक ओर तो 'अकृति की चिरयोवन-सुषमा, जिसरे/ नीले कमलों पर हँसते हुये हिस- हरक, सौरभ पीकर मद-मस्त पवन, पराग श्रौर मधु से पूं वसन्तकी छाया, करन्द-पगी केसर पर बेदी हदं परियां, नूतन किसलय के सले में कूलता अलि-शिशु, असीम आँगन में ज्गमग जलने वाली (तारों की) दीवाद्ली, जल की कक्ककल में घुलता हुआ विहगों का कलरव ओर अम्लान हसी हे। दूसरी ओर सुराई पक्षको से गिरत इये भासू-कण, दुःख के र्ट पीती हे ठण्डी सोसि, सन्तापो स छुलसे इए प्राणं का ` पतर, ङर-पिजर में पड़ा कण-कण को तरसता हुआ जीवन-शुक, पत्थरों ' में मसले हुये फूलों सा शेशव, अनजान में नष्ट होता हुआ प्राण, निर्निः मेष नयनों वाक्नो चिन्ता और आँसुओं का अक्ययकोष लिये जजर सानव-




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