नित्य दर्शन | Nitya Darshan

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Nitya Darshan by अचल सिंह लाल - Achal Singh Lalबी० पी० सिन्धी - B. P. Sindhi

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अचल सिंह लाल - Achal Singh Lal

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बी० पी० सिन्धी - B. P. Sindhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१९) कठपुतली मानव है, नटा चतुर तृही |` नाचत ज्यु नचावे नाथ; तेरो कारोबार है ॥ कहता जग पुन्य पाप, जाने न मेद जाको । भेदको শিবা तुदी, अगम वो अपार टै! नाद गहै तेरी जो, वाहिको निभाय लेता ॥ आनन्द तव चरणमें, बलिदार वारवार है ॥ পপি सायंकालकी प्राथना । घोपाह | शांति दाता देव दयाला | भगको शांति दे फिरपाला ॥१॥ म सव नाभ आधीन तिहरे । या भगो प्रभु तूं खरे ॥२॥ याचत नाय चरणश्टी सेवा ! दभो नाय अरन सत देवा प्री ओर चाह नहिं देव दयाखा | जानत धटषटकरी किरपास ॥४॥ तंहि स्वामि सत्र जगमें व्यापक । सुखशांति अरुसतका स्थापक 1॥4॥ अगणित गुनफा तू भण्डारी । वारनार प्रु जाड वारी ॥६॥ अरपदमे तू कर अज्ुमादा । मिग्ूह तिमिर दीय तत्तासा ॥७॥ तम तन सत्यज्ञानकों पाऊे | वो दिन नाथ में घन्य कहलाऊं॥८[ रोम रोम ध्वनि सत गाजे | अल्ख नादं निनमें हि सुनावे ॥९॥ पुरकित गात गाऊ सत गाना । निजमे ही नाथ नितसुख माना ॥ १०॥ टि आातमं प्रमातम खमि! मानन्दं दाता यन्तसयामी ॥{६॥ शासमकल्पाण श्र पद्‌ । ॐ नामं निरंमन, त दुःख भनन ।




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