नित्य दर्शन | Nitya Darshan
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
977 KB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अचल सिंह लाल - Achal Singh Lal
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बी० पी० सिन्धी - B. P. Sindhi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१९)
कठपुतली मानव है, नटा चतुर तृही |`
नाचत ज्यु नचावे नाथ; तेरो कारोबार है ॥
कहता जग पुन्य पाप, जाने न मेद जाको ।
भेदको শিবা तुदी, अगम वो अपार टै!
नाद गहै तेरी जो, वाहिको निभाय लेता ॥
आनन्द तव चरणमें, बलिदार वारवार है ॥
পপি
सायंकालकी प्राथना ।
घोपाह |
शांति दाता देव दयाला | भगको शांति दे फिरपाला ॥१॥
म सव नाभ आधीन तिहरे । या भगो प्रभु तूं खरे ॥२॥
याचत नाय चरणश्टी सेवा ! दभो नाय अरन सत देवा प्री
ओर चाह नहिं देव दयाखा | जानत धटषटकरी किरपास ॥४॥
तंहि स्वामि सत्र जगमें व्यापक । सुखशांति अरुसतका स्थापक 1॥4॥
अगणित गुनफा तू भण्डारी । वारनार प्रु जाड वारी ॥६॥
अरपदमे तू कर अज्ुमादा । मिग्ूह तिमिर दीय तत्तासा ॥७॥
तम तन सत्यज्ञानकों पाऊे | वो दिन नाथ में घन्य कहलाऊं॥८[
रोम रोम ध्वनि सत गाजे | अल्ख नादं निनमें हि सुनावे ॥९॥
पुरकित गात गाऊ सत गाना । निजमे ही नाथ नितसुख माना ॥ १०॥
टि आातमं प्रमातम खमि! मानन्दं दाता यन्तसयामी ॥{६॥
शासमकल्पाण श्र पद् ।
ॐ नामं निरंमन, त दुःख भनन ।
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