गांधी साहित्य : मेरे समकालीन | Gandhi Sahitya :Mere Samakaaliin
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
622
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand): १२ :
साथ रखते । घोषालबाबू के बटन भी वेरा लगाता । यह देखकर बेरा!
का काम खुद मैने लिया। मुझे वह अच्छा लगता बड़े-बूढों की शोर मेरा
वड़ा आदर रहता था। जब वह मेरे मनोभावों से परिचित हो गये तब
अपना निजी सेवा का सारा काम मुभे करने देते थे । बटन लगवाते हुए मह
{पिचकाकर मुभसे कहते, देखो न, काग्रेस के सेवक को वटन लगाने तकं
की पुरसत नही मिलती, क्योकि उस समय भी वह काम में लगे रहते है ।'
इस भोलेपन पर मुझे मन में हँसी तो आई; परतु ऐसी सेवा के लिए मन में
अ्ररुचि विल्कुल न हुई ।
वासतोदेवी का देशबन्धु की मृत्यु के बाद, जो चित्र गांधीजी ने खीचा
है, वह बहुत ही मानवीय, बहुत ही करुण और बहुत ही यथार्थ है :
“वंधव्य के बाद पहली मुलाकात उनके दामाद के घर हुई । उनके आस-
पास बहुतेरी बहने बंठी थी। पूर्वाश्रम मे तो जब मै उनके कमरे मे जाता तो
खुद वही सामने आती और मुझे बुलाती । वेधव्य मे मुझे क्या बुलाती ।
पुतली की तरह स्तम्भित बैठी अनेक बहनों मे से मुझे उन्हे पहचानना था ।
एक मिनिट तक तो मै खोजता ही रहा। माग मे सिदूर, ललाट पर कुकुम
मुह में पान, हाथ मे चूड़ियां और साड़ी पर लैस, हँस-मुख चेहरा इनमे से
एक भी चिह्न मै न देख तो वासन्तीदेवी को किस तरह पहचान् ? जहा
मैने अनुमान किया था कि वह होगी वहा जाकर बैठ गया और गौर से मुख-
मृद्रा देखी । देखना श्रसह्य हौ गया । छाती को पत्थर बनाकर आइवासन
देना तो दूर ही रहा। उनके मुख पर सदा शोभित हास्य आज कहां था ?
मैने उन्हे सांत्वना देने, रिभाने और बातचीत कराने की अनेक कोशिशें
को । बहुत समय के बाद मुझे कुछ सफलता मिली । देवी जरा हँसी । मुभे
हिम्मत हुई और मैं बोला, आप रो नही सकती । श्राप रोग्रोगी तो सब
लोग रोवेगे। मोना (बडी लडकी ) को बडी मुश्किल से चपकी रखा है।
देवी (छोटी लडकी ) की हालत तो आप जानती ही है। सुजाता (पुत्रवध )
फूट-फूटकर रोती थी, सो बड़े प्रयास से शांत हुई है। श्राप दया रखियेगा।
ग्रापसे अब बहुत काम लेना है।'
“वीरागना ने दृढतापूवंक जवाब दिया--'मै नही रोऊंगी। मुझे रोना
आता ही नही ।
“मे इसका मर्म समझा, मुभे सतोष हुआ। रोने से दुःख का भार हल्का
हो जाता है । इस विधवा बहन को तो भार हल्का नही करना था, उठाना
था। फिर रोती कंसे ! अब मै कैसे कह सकता ह--लो चलो, हम भाई-
बहन पेट भर रो लें और दुःख कम कर ले ।'
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