प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास भाग 2 | Prachin Bharat Ka Rajniti Tatha Sanskritik Itihas Bhag 2

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Prachin Bharat Ka Rajniti Tatha Sanskritik Itihas Bhag 2   by विमल चन्द्र पाण्डेय - Vimal Chandra Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 प्राचीन भारत का रजतीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास प्रथम दो गुप्त्मरेश-श्ीगुप्त और जोघटोल्कच জান शासक--यह महत्त्व की बात है कि गृप्त-अभिलेख जहाँ प्रथम दो मरेशों--भीगुप्त भर श्रीषटोत्कच--के लिये एकमात्र महाराज” की उपाधि का प्रयोग करते हैं, वहाँ तीसरे नरेश श्रीचद्धगुप्त-प्रथम के लिये 'महाराजाधिराज' की उपाधि का। यह सत्य है कि महाराज” की उपाधि सर्देव श्रधीनतासूचक वंद्री होती। इसी काल के वाकाटक-नरेशों ने महाराज' की उपाधि धारण की थी. फिर भी वे स्वतन्त्र शासक थे। परन्तु एक ही अभिलेख में एक राजा के साथ महाराज' की उपाधि और दूसरे के लिये महाराजाधिराज' की उपाधि का प्रयीग स्पष्ट रूप से दोनो के भ्रन्तर की सूचना देता है। भ्रन्तर यही हो सकता है कि 'महाराज' की उपाधि भ्रधीनतासूचक प्रौर 'महाराजाधिराज' की उपाधि स्वतन्त्रता- सूचक हो। यह भी महत्त्वपूर्ण बात है कि युप्त-मरेशों ने स्वय अपने अभिलेखों में प्रायः महाराजाधिराज' की उपाधि का प्रयोग ग्रपने सम्नाट्‌-पद को सूचित करने के लिये किया है श्रौर महाराज कौ उपाधि का प्रयोग अपने सामन्‍्तों के मधीनत्व को सूचित करने के लिये। इस पृष्ठभूमि पर यही प्रतीत होता है कि प्रथम दो गुप्त-नरेश--गुप्त और घटोत्कच--सामन्‍्त शासक थे और तृतीय गुप्त-नरेश चन्द्रगृप्त-प्रथम स्वतन्ते शासक था। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि गुप्त और घटोत्कच किसकी प्रधोनता में शासन करते थे-- (१) डॉ० দে का मत था कि ये दोनों कुषाणों के सामन्‍्त थे। परन्तु प्लाज इस मत को कोई नही मानता, क्योंकि छुषाणों का अन्त गुप्तों के काफी पूवेहौ चका था। ५ হর (२) डॉ० जायसवाल का मत है कि कुषाणों का अन्त भारशिवों ने किया ५ वही गुप्तां के भी अधिपति थे । परन्तु इस मते का कोई प्रमाण नही है। (३) डॉ० प्रमोदचन्द्र वागची ने यह मत प्रतिपादित किया है कि पूर्वी हे भा पर तीसरी शताब्दी मे এ का अधिकार था। इसी मत को ५५ करते রর कुछ विद्वानों ने एण्डों को ही गुप्तों का श्रभिपति माना है। परन्तु समुद्रभुप्त के प्रयाग-स्तम्भ-लेख में पूर्वी भारत मे कही भी मुरुष्डों का उल्लेख नहीं है । (४) लिल्छवि-नरेश जयदेद-द्वितीय का नेपान-अभिलेख र उसके सुपुष्प लिज्छवि का उल्लेख करता है जो पाटलिपुत्र मे उत्पन्न इभा था। व पर कुछ विद्वान्‌ मगध पर लिच्छवियों का प्रधि लिच्छवि गूष्तों के भ्रषिपति थे। 2০৮৮০৪০০০০০) परन्तु इनमे से कोई भी मत निश्चित साक्षयों समस्या भाज मी भ्रनिर्णोति है । ৮৮৫১ वह




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