हिंदुस्तानी | Hindustani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ हदुस्तानी
दुषन भोगि रतनावलो मन मह चनि दुंषियाह ।
पापनु फल दुख भोगि तू, पुनि निर्मल है जाइ ॥
पति-वियोग के बाद रत्तावलि की माता का भी देहात हो गया । यह बात हम रलानि
के एक दोहे के आधार पर कह उके है। धन का जवाब, माता का विद्लोह सादि दु से
के अतिरिक्त सब से वहा दु'ख पति का अज्ञात-भवास था। पति के न होगे पर পিক লাল
की वया गति होठी हुँ, यह सभी हिंदु जानते है। रत्वावलि ने यह सच द्राननाष् भ |
इन यातनाओ के ताप ने उद्दे शुद्ध सोने के समान बचा दिया ।
ज्यों ज्यों दुख भोगति तर्ाहि, दूरि होत तब पाप ॥
रतनाजलि मिर्मल गनत, जिमि सुबरन सह तप ६।
और वह प्राचीन भारतीय देवियों के पतिब्रत-धर्म का झादर्ण अपने सामने रख, परति-मकित
में ही' जीवन बिताने लगी ।
रतनावलि जिय जानि तिय, पतिब्रत सकति महान 1
मृत पति हु जीवित करधौ, साविन्नी सतिबान ॥
पति पद सेवा सों रहित, रतन पादुका सेइ।
ग्रिरत बाव सो रज्जु तिहि, सरित पार करि देह ॥
रत्नावलि के ऊपर तुलसीदास जी के इस सदेश का--/रतन समुभ्ति जनि पृथक मोहि,
जो सुमिरति रघुनाथ/--प्रभाव उस के निम्न-लिखित दोहे से प्रकट होता है। जिस
में उस ने श्रपतरे हुदय की धीरता का परिचय विया है ।
राम जासु हिरदे बसत, सो पिय सम उरधाम ।
एक बसत दोऊ बसें, रतन भाग अश्रभिरास ॥
आत्मचारित्रिक भावात्मक काव्य के अतिरिक्त रत्नावलि ने, जैसा कि हम ने
पीछे बताया है, नीति और उपदेशात्मक काव्य की रचना भी की हूँ । उस ने अपसे अनु-
भव से स्त्रियों को वहुत-सी सद्शिक्षाएं दी है, जो भारतीय चारी-धर्म के आदशों को सामने
रखती हैं। ये शिक्षाएं भारतीय सस्कृति की संरक्षिका युवतियों को घारण करने योग्य
हैं। पति-प्रेम और पति भक्ति की उस ने बड़ी प्रशंसा की ह ।
उदाहरण--
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