हिंदुस्तानी | Hindustani

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Hindustani by रामचन्द्र - Ramchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ हदुस्तानी दुषन भोगि रतनावलो मन मह चनि दुंषियाह । पापनु फल दुख भोगि तू, पुनि निर्मल है जाइ ॥ पति-वियोग के बाद रत्तावलि की माता का भी देहात हो गया । यह बात हम रलानि के एक दोहे के आधार पर कह उके है। धन का जवाब, माता का विद्लोह सादि दु से के अतिरिक्त सब से वहा दु'ख पति का अज्ञात-भवास था। पति के न होगे पर পিক লাল की वया गति होठी हुँ, यह सभी हिंदु जानते है। रत्वावलि ने यह सच द्राननाष्‌ भ | इन यातनाओ के ताप ने उद्दे शुद्ध सोने के समान बचा दिया । ज्यों ज्यों दुख भोगति तर्ाहि, दूरि होत तब पाप ॥ रतनाजलि मिर्मल गनत, जिमि सुबरन सह तप ६। और वह प्राचीन भारतीय देवियों के पतिब्रत-धर्म का झादर्ण अपने सामने रख, परति-मकित में ही' जीवन बिताने लगी । रतनावलि जिय जानि तिय, पतिब्रत सकति महान 1 मृत पति हु जीवित करधौ, साविन्नी सतिबान ॥ पति पद सेवा सों रहित, रतन पादुका सेइ। ग्रिरत बाव सो रज्जु तिहि, सरित पार करि देह ॥ रत्नावलि के ऊपर तुलसीदास जी के इस सदेश का--/रतन समुभ्ति जनि पृथक मोहि, जो सुमिरति रघुनाथ/--प्रभाव उस के निम्न-लिखित दोहे से प्रकट होता है। जिस में उस ने श्रपतरे हुदय की धीरता का परिचय विया है । राम जासु हिरदे बसत, सो पिय सम उरधाम । एक बसत दोऊ बसें, रतन भाग अश्रभिरास ॥ आत्मचारित्रिक भावात्मक काव्य के अतिरिक्त रत्नावलि ने, जैसा कि हम ने पीछे बताया है, नीति और उपदेशात्मक काव्य की रचना भी की हूँ । उस ने अपसे अनु- भव से स्त्रियों को वहुत-सी सद्शिक्षाएं दी है, जो भारतीय चारी-धर्म के आदशों को सामने रखती हैं। ये शिक्षाएं भारतीय सस्कृति की संरक्षिका युवतियों को घारण करने योग्य हैं। पति-प्रेम और पति भक्ति की उस ने बड़ी प्रशंसा की ह । उदाहरण--




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