भारतीय नव जागरण का इतिहास | Bharatiya Nav Jagran Ka Itihas

Bharatiya Nav Jagran Ka Itihas by वावूरव जोशी - Vavuraw Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| राष्ट्रीयता की দ্র १७ मुसीबत ओर बढ़ा दी । सनू १८०३ में बम्बई मे दुर्भि पडा था ग्रौर उसके बाद सन्‌ #८३७ में मद्रास में | इनके अतिरिक्त पांच ओर दुर्भिन्ष इस बीच 'पड़े । इनमें १५ लाख आदमी मरे। इनके बाद सन्‌ १८६१ में फिर उत्तर्पश्चिमी भाग में अकाल पढ़ा | इसमें भी काफी नुक्तान हुआ। लेकिन पहले की तरह इस बार भाग्य को दोष देकर जनता चुप- चाप नहीं रही । इस बार उसने यह अनुमव किया कि ये दुर्मिक्ष ईश्वर- कृत नहीं, मनुष्य-कृत हैं। सन्‌ १८७२ से लेकर सन्‌ १८७६ तक बंगाल ओर बिहार में हुमिक्ष पड़ा ओर अनता में हाहाकार मच गया । इस वार लोगों की यह भावना और तीव्र हुई कि हसके लिए सरकार दोषी है और लोगों में असन्तोष और कहता की भावना अधिक तीव होगई । जब एक ओर ये दुर्भिक्ष जनता को परेशान कर रहे थे, तब दूसरी ओर सन्‌ १८७७ में दिल्ली में दरबार हुआ जिसमें पानी की तरह पेसा वहाया गया, ओर महारानी विक्टोरिया को सम्राशी की पदवी से विभूषित किया गया | लोगों के मन पर इसका अच्छा असर नहीं हुआ । यदि यह पेसा अ्रकाल- थीड़ितों की सहायता में खर्च किया जाता तो हज़ारों की जानें बच जातीं लेकिन सरकार का ध्यान इस तरफ कहां था ? जत्र रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था? वाली कहावत के अनुसार सरकार निश्चिन्त थी । उसे लोगों की कुछ परवाह नहीं थी । लार्ड लिय्न के शासनकाल में दूसरा अफ़रगान-ुद्ध प्रारम्भ हुआ । अफ़गान युड और अस्त्र- इसमें भी काफी पैसा खर्चे हुआ और यह भी कानून लोगों की आलोचना का विपय बना। लोग इतना तो जानने लगे थे कि उनके पैसे से दूसरे देश को गुलाम बनाने का प्रयत्न किया जारहा है लेकिन सरकार को इसकी चिन्ता कहां थी ! उसने अस्न-कानून भी पास कर डाला जिसके अनुसार त्रिना लाइसेन्स चन्दूक, तमन्‍्चा और तलवार रखने का निषेध कर दिया गवा | “विशेषता यह थी कि यह निषेधाशा केवल भारतीयों के लिए थी | परिस्थिति यह थी कि एक ओर जनता में इन सब कारणों से असनन्‍्तोष , दुर्भि




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