दर्शन विशुद्धि और विनय समपन्नता | Darshan Vishuddhi Aur Vinay Sampannata

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Darshan Vishuddhi Aur Vinay Sampannata by प्रद्युम्न कुमार - Pradyumna Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) भी अन्तरंग बहिरंग परिग्रह से जिनका . मन मलीन है उनमें गुरूपना नहीं होता । २४ प्रकार के परिग्रह रहित और ज्ञॉनः ध्यान तप में लीन ऐसे निग्नेन्थ मुनि के ही सम्यग्हृष्टि के गुरूपने का निश्चय होता है जो रत्नत्रय (सम्यग्दशन ज्ञान चारित्र) के धारी हैं वे हो गुरू हैं श्रन्य विपरीत भेषधारी गुणशूत्य पुपरू गुरुत्व मानने की श्रद्धा सम्यग्दृष्टि के नहीं वतती । चलो, अपने से तो भले ही हैं यह कसौटी विवेकी की नहीं है। व श्ञास्त्र, गुरु का स्वरूप तिर्दोप होता है उक्त गुण- धारी देव शास्त्र गुरू कौ उपासना, मान्यता, पूजा सम्यग्दृष्टि श्रावक करता है ।.इन गुणों के बिना अच्य मिथ्या देव, शस्त्र गुरू को सम्यग्दृष्टि. वन्दना नहीं करता । श्रखिर वह॒ तो পলা कल्याणकामी है । वह फिर कुदेव कुगुरू श्रौर कुशास्त्र से क्‍या हित होने की आशा रखे ? कुछ भी नहीं । , सच्चे देव शास्त्र गुरूकप्रसंगसेहीकार्यसफलताः- ॑ किसीभी काये में सफलता प्राप्त करनीहो तो देव, सस्व, गरूका प्रसंग हुश्रादही करतादहै। जसेकिगे को संगीत सीखना है तो संगीत का सर्वोत्कृष्ट निपुण उसका आदर्श होता है वह हुआ संगीत मार्ग का देव । और जो समय पर शिक्षा देने वाला उस्ताद मिले वह हुआ संगीत का ग्रुरू और संगीत कला सम्बन्धी पुस्तक हुई शास्त्र |तो इन तीनों की उपा- सना संगीत शिक्षार्थी को आवश्यक होती है इसी प्रकार धर्म मार्ग में सच्चा सर्वेज्ञवीतरागी देव, उस देव की वाणी-गास्तर आर वीतरागी निम्नेन्थ गुरुकी उपासना सम्यन्दूप्टि करता है जिससे वह मोक्ष मार्ग में विकास करता हुआ कल्याण का अधि- कारी वन जाता है। अपने ज्ञान और वेराग्य के अन्त: स्वरूप में बहने का मार्ग वह निरन्तर देव शास्त्र गुरू की भविति द्वारा पाता रहता




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