उन्नीशवी शताब्दी का अजमेर | Ajmer In Ninteeth Century

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Book Image : उन्नीशवी शताब्दी का अजमेर  - Ajmer In Ninteeth Century

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐतिहासिक सन्दर्भ 4 महरादें जुड़वाई थीं। चौहानों की पराजय के वाद श्रजभेरमें सूवेदार रहने लगा भौर नगर की समृद्धि को इतना घवका लगा कि पन्द्रहवीं घती के मध्य तक स्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती की मजार के पास जंग्रलो पशु और वाप घूमते हुए नजर भाते ये । २० शस तरह उत्तरी भारत के इतिहास में श्रजमेर की यशोगाया का प्ंत हुआ पौर तत्पश्चात्‌ प्रजमेर राजस्थान के हृदय में मुस्लिम चौकी की तरह बना रहा जिसका उह्ँ श्य राजपूत राजाओं पर नियन्परण रताना था । सद्‌ ११६३ में मुहम्मद गौरी के हायों पृथ्वीराज की पराजय के बाद মং मुसलमान गतिविधियों का एक केन्द्र वन गया । मुहम्मद गौरी ने स्वयं प्रजमेर के निकटवर्ती पह़ौसी क्षेत्रों के विदद्ध सैनिक अभियान का नेतृत्व किया परन्तु शजमेर पर पूरी तरह मुसलमान शासन को ल्यापित करने छा भार झुतुबुद्दीन एवक को सौंपा । पृष्वीराज के छोदे भाई हरिराज ने जिसे फरिश्ता ने हेमराज श्लौर हसन निजामी ने जिसे हीराज ठहराया है, भपने भतीजे को, जिसने मुसलमानों का आधिपत्व स्वीकार कर रफसा था गही से उत्तार कर स्वयं भ्रजमेर दंग राजा बना । हरीराज के सेनापति छप्तराज में दिल्ली पर क्‍्राफ्मणा किया, परन्तु दुतुबुद्दीन के हाथों पराजित होकर उसे प्रजमेर भाग प्राना पड़ा । खुतुबुद्दीत ने उसवग प्रजममर तक पीछा किया तथा हरिराण को युद्ध में पराजित कर धजमेर पर प्भिकार फर लिया 1** उसका उहेश्य श्रणमेर मे लेकर प्रन्हिलवाड़ा ** तक का छेत्र जीतना था परल्तु मेरों मे राजपू्तों के सहयोग मैं उसे भारी पराजय दी जिसमें उसे घायल होकर प्राण बचाने के लिए भाग कर जमेर के किले में शरण सेमी पड़ी । पीछा फरते हुए राजपूतों से श्रजमेर दुर्ग फो पैर लिया। यह पेरा कई मद्दीनों तक चला परन्तु गजनी से झुमुक पहुंचने पर राज- पूतों को पीछे हटना पढ़ा । ३ दुतुबुद्दीन को मुस्यु के बाद राजपूतों ने फुछ काल के लिए ताराबढ़ पर पुनः प्रधिदार कर जिया था 1*४ परन्तु इल्तुतमीश मे शीघ्र ही उन्हें ইত कर प्रजमेर पर प्रपना अधिफार कर लिया। तब से छेकर तैमूर फे झाक्रमण तक भजमेर दिल्ली सल्तनत के পদীন बसा रहा ।१६ पजमेर चौदहवीं सदी के प्रन्त तक दिल्‍ली सल्तनत के फब्णे में रहा । इन दो सदियों के इतिहास में श्रजमेर के बारे में वहां के घृवेदारों के परिवर्तन की पर्चा को छोड़कर भश्रन्य किसी तरह का विशेष उल्लेस नहीं मिलता है 1४४ तंमूर के পাপা গীত সরনহ ভায়া प्रजभमेर प्रर विजय के थीच फे समय में प्रजमेर ने कई सत्ता-परिवर्तन देसी । पहले मालवा के सुरालमान सुल्तानों, इसके बाद गुजरात के सुल्तान সী प्रंत में राजपूतों के श्रधिकार में यह रहा । इस समय में नगर की समृद्धि का काफी छातस তা । । सव्‌ १३६६७ श्रौर सब १४०६ के मध्ययर्ती পাল মী, অব दिल्ली सल्तनत को दिल्‍ली पर भी पअ्रपना अधियार অনা रखना कठिन लगता था, सिसोदिया राजपूतों ने मारवाड़ फे राव रणमल*० के नेतृत्व में




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