साहित्य - परिचय | Sahitya - Parichya

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Sahitya - Parichya by मदन मोहन शर्मा - Madan Mohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९, शब्द दवितियाँ तीन हैँ--- १. अभिधा २. चकषणा ओर ३. व्यंजना । अभिधा से शब्दके साधारणं अका बोधं होतार) शब्दोको सुनतेही यदि ` अुसके अर्थक बोध हो जाभे तो यह अुस्तकी अभिधा शक्तिका कार्यं हुआ । अदाहरणके लिओ हम गाय, मेज, आदमी, शेर आदि शब्दोंकों ले सकते हैं। जिन शब्दोंके सुनते ही हमारे मनमें जो चित्र खड़ा होगा वह सभीके मन में | लगभग अक सा ही होगा । गाय साने चार पैरका अंक कब्द अंसा पशु जो दूध देता हो, जिसके दो सींग हों, ধৃত হী शक्तियाँ आदि-आदि | असी तरह आदमी और शेर आदि शब्दोंसे | विशिष्ट जीवोंका ज्ञान होगा । यह स्रवेसाधारणतया कोषः, व्याकरण तथां जिन शब्दोंका व्यवहार करनेवाले सर्व-साधारण लोगोंसे जाना जा सकता है | अतः यह अर्थ अमिधेय अथवा बाच्याथथें कहलाओगा और दब्दंकी यह शक्ति अभिधा शक्ति कहलाओंगी । शब्दके प्रधान या मुख्य अर्थको छोड़कर किसी दूसरे अर्थंकी लिस- लिओ . कल्पता करनी पड़े कि अर्थ ठीक वैठ जाअं वर्ह लक्षणा होती है । जब शब्दके अकसे अधिक अर्थ होते हों ओर वाक्यके अ्थंको ठीक समझनेके लिओे विशिष्ट अथंको संमस्नेका प्रयत्न करना पड़े वहाँ लक्ष्याथं होता है गौर शब्दकीौ शर्विते लक्षणा कहा अंगी जंसे-- .. “लाला लाजपतराय पंजाबके शेर थे ।” यहाँ निश्चय ही शोर शब्द अपने सामान्य अथरम प्रयुक्त नहीं हुआ है | आदमी शेर नहीं हो सकता । यहाँ दोर शब्दका अपबयोग करके अेक विशेष प्रकारका चमत्कार अंत्पन्नं ` किया गया है। शेरसे यहाँ अर्थ है शेरके समान वीर, साहसी; तिडर, निर्भीक । जब मुख्यार्थंके साथ-साथ शब्दका और भी कोओ अर्थ प्रकट होता हो तो असे लकष्पा् कहते हैं । तीसरी शक्ति व्यजना है। अभिधा और लक्षणा द्वारा व्यक्त होनेवाले अर्थक्े अलावा यदि और ही किसी अन्य अर्थमें शब्दका प्रयोग




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