मध्यकालीन काव्य में जनवादी चेतना की अभिव्यक्ति के स्वरुप का अध्ययन | Madhyakaliin Kavya Me Janvadi Chetna Ki Abhivyakti Ke Swaroop Ka Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्लेटो सृष्टि के मूल में प्रत्यय (10०9) की स्थिति को स्वीकार करते हैं और इस प्रत्यय जगत को भौतिक जगत्‌ के परे अपनी वस्तुगत सत्ता से सम्पन्न घोषित करते हैं। भाव जगत उनके विचार से प्रत्यय जगत्‌ की नकल है। इस नकल में सत्‌ और असत्‌ दोनों का अंश हे।1 जर्मन दार्शनिक लाइबनिज भी सृष्टि के नियंता के रूप में ईश्वर को मानता है, जो 'निरवयव, अविभाज्य, तात्विक और चेतन है। हेगेल का द्वन्द्रवाद इस दर्शन को बेहतर ढग से व्याख्यायित करता है। जिसे विकासवाद के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हेगेल ने संसार को हन्द्ात्मक संबंध तथा परस्पर निर्भरता के रूप मे स्वीकार किया।2 हेगेल ने द्वन्द्दवाद के केन्द्र मे तीन बिन्दुओं को प्रमुख माना -- (1) प्रतिपक्षों की एकता और संघर्ष का नियम (2) मात्रा के गुण में संक्रमण का नियम और (3) निषेध के निषेध का नियम। इन्हीं तीन नियमों के आधार पर हेगेल के विकास की अवधारणा का मूलाधार केन्द्रित है ।3 हेगेल निषेध में ही विकास की शक्ति को रेखांकित करते हैं और यह विकास जिस्तरीय आयामों पर आधारित होता है-- पक्ष (11716815), प्रतिपक्ष (^7111 (1575) तथा संश्लेषण ($५॥112515) | अत: पक्ष में प्रतिपक्ष समाहित है और जब असंगति होती है तब तीसरा पक्ष संश्लेषण अर्थात्‌ अन्तर्विरोध जन्म लेता है। मार्क्स तथा एंगेल्स ने हेगेल के न्द्रवाद कौ स्थापनाओं को निः्संकोच रूप से स्वीकार किया। मार्क्स ने अपने “पूँजी' (८००1०) नामक ग्रंथ में लिखा है कि 'हेगेल के हाथों मे द्वन्द्रवाद पर रहस्य का आवरण 1. मार्क्सवादी साहित्य चिन्तन -- डॉ० शिवकुमार मिश्र पृ०-7 | 27851628116 59101750915 019/80105 85 '5ॉद्याध109 017 15 1690 , 10 068 20116011/ ০0017091৬50, 12120005179 10109 [0५ 0715 18811115121 21701679915 010 छि10व6&॥167119|5 ० ४६1१181॥71 | 61111511) [/0500८ 1961, © 68 3 दर्शन के इतिहास कौ रूपरेखा, इ० ख्ल्याविच, प्रगति प्रकाशन, मास्को प° 84 ।




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