पारसी स्टेज के हिंदी नाटक | Parsi Stage Kay Hindi Natak

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
95 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“नानासावीपस म्पर्न्न नानावस्था न्तरा स्मकम्
लौकवुचानुकणा नाट्यमैतन्मया करत 1
उनके अनुसार नाटक तीन लोकँ के माकं का नकी
` जने २
त्रौ कस्य हि सर्वस्य नाट्य॑ माबाजुकीतैनर्म
४, मत दारा एतिपादित नाटक की इत्ते अनुकएणात्मक
धारणा का पुततिपादन ही पाश्चात्य नाटूय समीदाक অত্র ने किया है | उनके
अनुसार ताटरकोँ में क्रिया का अनुकरण होता है । कीथ के अनृसार् --- सिदांततः
दौर्नौ नाटक कौ अनुकृति मानते है» अतः गक बौर मारतीय नाट्यशास्त्रकार्रों के
विचार्यो ज कौट पैव नहीं हे । किन्तु विवार-विभिन्नता का सूत्र वर्हीसै जारस्य
ही जाता ह, जन कि भारतीय शस्वकार् रुपक को ऋस्था की अनुकृति मानतै इ
जोर अस्त के अनुसार वह केवठ किया की उनुकृति है 1? किया का सम्बन्ध केवल
शरीर से ही नहीं हछौता । भाव विकारादि मानसिक ভিবা্ हैं। नाटक में
घटताओँ से अभिक घटनावर्टि्य को जन्मदात्री मौखिक वृध का विश्छेषण
स्वं सद््ििता का रपष्टीक्एण होता है । माव और কিনা के समुच्चय के अतिरिक्त
चरित्र का कौ अन्य अर्थं नहीं । नाटक वस्ततः रम्मच प् मानव क-क्नद-कियार्जीः
माव तथा अस्था की कनुकृचि हे, चि अभिनेतागण पेदाक के सम्युष् नाट्य कके
তুহিন करते हैं और उन्हें रसमबस् रसमग्न कर छौकौचर आनन्द घुदान करते है ।
प् ढा० श्याम्पुन्दरदास के अनुसार >- कतिपय शक्तिशाली
यात्रा और उनके संसरग से बनी जाक्क और वैनवतती घटनावछी को दश्यकाव्य का
रुप दे देने से कृपक की रचना होती है ~
६. ~ खमिनव माटूयशास्क के ह
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ग सत् सनिः पिरि यकर ति तहत उनः
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कथा के बाधार पर नाट्यकार द्वारा रचित
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