पारसी स्टेज के हिंदी नाटक | Parsi Stage Kay Hindi Natak

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Parsi Stage Kay Hindi Natak by गीता गुप्ता -Geeta Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“नानासावीपस म्पर्न्न नानावस्था न्तरा स्मकम् लौकवुचानुकणा नाट्यमैतन्मया करत 1 उनके अनुसार नाटक तीन लोकँ के माकं का नकी ` जने २ त्रौ कस्य हि सर्वस्य नाट्य॑ माबाजुकीतैनर्म ४, मत दारा एतिपादित नाटक की इत्ते अनुकएणात्मक धारणा का पुततिपादन ही पाश्चात्य नाटूय समीदाक অত্র ने किया है | उनके अनुसार ताटरकोँ में क्रिया का अनुकरण होता है । कीथ के अनृसार्‌ --- सिदांततः दौर्नौ नाटक कौ अनुकृति मानते है» अतः गक बौर मारतीय नाट्यशास्त्रकार्रों के विचार्यो ज कौट पैव नहीं हे । किन्तु विवार-विभिन्नता का सूत्र वर्हीसै जारस्य ही जाता ह, जन कि भारतीय शस्वकार्‌ रुपक को ऋस्था की अनुकृति मानतै इ जोर अस्त के अनुसार वह केवठ किया की उनुकृति है 1? किया का सम्बन्ध केवल शरीर से ही नहीं हछौता । भाव विकारादि मानसिक ভিবা্ हैं। नाटक में घटताओँ से अभिक घटनावर्टि्य को जन्मदात्री मौखिक वृध का विश्छेषण स्वं सद््ििता का रपष्टीक्एण होता है । माव और কিনা के समुच्चय के अतिरिक्त चरित्र का कौ अन्य अर्थं नहीं । नाटक वस्ततः रम्मच प्‌ मानव क-क्नद-कियार्जीः माव तथा अस्था की कनुकृचि हे, चि अभिनेतागण पेदाक के सम्युष् नाट्य कके তুহিন करते हैं और उन्हें रसमबस् रसमग्न कर छौकौचर आनन्द घुदान करते है । प्‌ ढा० श्याम्पुन्दरदास के अनुसार >- कतिपय शक्तिशाली यात्रा और उनके संसरग से बनी जाक्क और वैनवतती घटनावछी को दश्यकाव्य का रुप दे देने से कृपक की रचना होती है ~ ६. ~ खमिनव माटूयशास्क के ह ভাবি या का ल्यत ग सत्‌ सनिः पिरि यकर ति तहत उनः १७ ना9शॉ03 “>> हैं दः वक शमी सीताराम चलद कथा के बाधार पर नाट्यकार द्वारा रचित ক मतारु्ार किसी २ $$ শপ হও




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