पति भक्ति | Pati Bhakti

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Pati Bhakti by शिवव्रतलाल वर्म्मन-Shivvratlal Varmman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ - ११९] ৬ ৫ ৮৮ মী 0 यह थी कि वह रातदिन राज्यके काम में लोन रहता था । मन्त्री उपमन्त्ी, नियन्ता, योद्धा ओर अन्य द्वारौ गण सश्र ये, परन्तु यह न तो किसी के हाथ से अपने विशेष कायैको करथाता था और न दूसरों के नेत्र से, और राजाओं की भांति प्रज्ञा की अवस्था को देखा करता था। सरदो हो वा गरमो वर्षाहो था জামী ब धल मट्दो की ऋतु, राजा सदेव भ्रमण में रहता थो और देश के प्रत्येक प्रान्त में जाकर स्वयं प्रज़्ञाकी अवल्था का परिचय लिया करता था ।. एकबार वह भ्रमण करता हुआ मंभ्ोढ़ी गांव में आया। राजकीय डेरा बछतो. के बाहर खड़ा कूर दिया ।. गावके लोगो ने राजाका आगमन्‌ सुन करर अं गनो क्ि.के : अ्वुंलार खान पान कु प्रबन्ध न । जो सामग्री, जिं के पास“ थी वह अपने सिर परं उठा.कर लॉग 1 इन निर्धनं गांव: निप्नासियां के बोच में ग्रक-थोड़ी आयु वाली परन्तु रूपवती कन्या भ्री:वेह मठीके भार्ड-करतन ल।ई। शिरपर भारी बोरा था। सेनाके मनुष्य औरों का बोका उतारने लगे कन्या के हाथ पांव थिरक रह्दे थे । राखनगांर की दृष्टि स्वयं उस पर पड़ी वह राजा था मन के भावों को गुप्त रखने में प्रसिद्ध था, परन्तु रूप का जादू प्रबल होता हैं, राजा व रंक सबही उसके प्रभाव के नोचे आजाते है, कस्या फटे पुराने चश््र पहने थी। शरीर पर कोई भूषण नहीं था, ऐसी दशा में रूप का लावण्य और तेज और भी बढ़जाता ই । वह उसकी ओर सूबयं ক




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