नई तालीम | Naii Talim Varsh - 15 Ank-1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : नई तालीम - Naii Talim Varsh - 15 Ank-1

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य राममूर्ति - Acharya Rammurti

Add Infomation AboutAcharya Rammurti

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
महत्य का नहीं है। मार्गदशिका पडकर पास होने की बात तो उस्चे जरूर नापसन्द छगती है वर्योंकि उसमें विद्यार्थी नह मागदर्शिका ल्खिनेबाला पास हुआ है। नयी तालीम तो उमे ही सच्ची शिमा कहेमी जिते बाल्व ने आत्मसात किया हो । बालक को दिया गया और दिया जातेवाला ज्ञान आत्मसात करने के (ए कई चीजा वी जरूरत होती है शिसमें अनुभव सबसे अधिक महत्व रखता है। समग्र माक्षरी शिक्षा वा आधार मूलासर और वबणमभाला ही है। बर्णधारा वी जानवारी के बिना वच्चां आगे बढ ही नहीं सवता। उसे पा छेने के बाद उसके लिए बेद-बेदान्तों को पडता भी आसान हो जाता है । वयाकि सभी भापाएँ इन बावन अक्षरा की ही लीला है । बालक वो उच्च विद्या में या आनेबाली जिन्दगी में जो बुछ समझना टै साम्य वैषम्य भेद विभेद मिथ्रण- वग।वरण, समन्वय-मामजस्य या विग्रह, इन मवे तारतम्य ঈ' लिए बचपन के अनुभव ही वणमाला का काम देत हैं। जिसकी मो बचपन में ही चछ वसी हा आर जिमकों अताय आश्रम में कमी वत्मल गृहपति की छाया में यहा होना घड। हो उछ दच्चे ये सामने मा शब्द परे समय गृहपति का चित्र ही आयगा। उसी तरह जो माँ के ददले मौसी के पे बद होता है उस बच्चे के लिए माँ शब्द का अनुवन्ध मौसी के साथ रहता है। यहू बात अय भाव विभाव या अनुकूल সবিকৃক্চ संवेदना वो भी छू होती है। बवपन के किसी अच्छे या बुर अनुभव से प्राप्य अच्छे या बुरे अल्प या विद्येप गहरे या छिछले, सकुचित या व्यापक अनुभवा के द्वारा बालक आनेवाले भ्रश्ता या समस्याआ को सुलझायगा। नैष हारम के यह दूसरो दीनयाद है। नयी तालीम बुनियादी मूलाक्षर की तरह मानव जीवन के लिए जो अनुभव बुनियादी माने जाते हैं उन्ह बालका की कला ध्यान में रखकर सहज रीति से शाला मे देने वी कोडिय करती है। उसमें से यह सिद्धान्त फलित होता है कि दल एक परिवार था छोटा मा समाज है। कोई भी समाज अन्योयाश्रय परिश्रम और सहकारी वृत्ति के बिता खडा नहीं हो सद॒ता। इसीलिए शाला अगस्त, /६६ में बच्चा की वक्षा वे अनुकछ उपयोगी परिश्रम धिशा प्रक्रिया वा एक महत्वपूर्ण अगर है । हम यह कहना नहीं चाहते कि इन सिद्धान्ता कौ माध्यमिक आर उच्च शिक्षा में ठोक ऐसा ही अपनाया जाय जैसा प्रायमिक शिक्षा में। हो सकता हैं कि सिद्धान्त यही रहने पर भी माध्यमिक और उच्च शिक्षा में पहली सात कक्षाआ से कुछ अटग ही रहे, लेकिन पहली सात कक्षाआ तक यानी प्राथमिक और फ्रजियात (अनिवार्य) वक्षा में तो उस अपनाये बिना कोई चारा नहों है । भ 4 म वारर जनममे पहले তান আনার জিবন बालक के +ए कुरते सीती है पर वे सभी एक ही नाप के नही बनाता । कुछ बालक दे' तीसरे महीन की उम्र में काम आ सब ऐस होते है बुछ छ महीने की उम्र होने पर काम आ सकें ओर बुछ एक साल का बच्चा होते पर उपयोग में आव एसे नाप के होते है। ऐसा ही लड किया के गीने का भी होता है। गौने की तैयारी चार- पाच साल पहले से होती रहती है. क्‍्पावि गरीब माता पिता इतने कपडे थोडे ही दिना में बनवा नही पाते पर बनवाने के समय भो मां इस बात का ध्यान अवश्य रखती है कि चौये या पाँचच वष जब मेरी लडत्री यह कपडा पहनेगी तव उसकी देह कैसी होगी और छडकी की जरूरत क्या हागी । यह बात शिक्षा के विषय म हम झ्याठ में नहीं रसवे । आज प्रायमिक शाला म॒॒प्रविष्ट होतवाल्ा पाँच साल वा वाल्क इकवीसवे वप का होकर जब अध्ययन समाप्त करके प्रभावकारी नागरिक बनेगा तब उसकी और जिस जगत में वह रह रहा है उसकी कौन-कौन-सी आवश्यं कताएँ हगी ? उस समय के जंग्रत के लिए आवश्यक कमकीशल, अनुरूप भावनाएँ और वैद सामग्री हमे उन्हें शिक्षा के रुप में देनी होगी । अगर यह बात घ्यान मे न रही और ইন মনেল रहे कि आज की जो अवश्यक्ताएँ है वे बीस साल बाद वी भी हागी और इसी दृष्टिकोण से वाल को বাহ হী হই আট আজব उस जगत का स्दामी तो नदी ही वनगा, इम जगत के अनुरूप भी नहीं নল पायगा। १५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now