नागानंदन | Naganandam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाटक का कर्ता
श्री हषं के नाम से तीन नाटक -- रत्नावली, प्रियद्थिका तथा
-नागानन्द् - दौ स्ते श्रौर इदं छुर्कल् कविता हमें प्रात हुई है ।
तीनों नाटक एक ही हाथ की कतियां हैँ । इस पक्त के समर्थन
में हमारे पास कई प्रमाण हैं | सब को प्रस्तावना सें श्री हप॑ को तिद्ध
इस्त कवि वताप्रा गया हैं । प्रियदर्शिका के दो छोक नागाननद में भी-
मिलते हैं और एक शोक रत्नावली मे । करई गदाश भी मिलते जुलते
हैं और कई स्थितियां भी एक जेसी हैं तीनों नाटकों में भाव, रस और
शेली की इतनी समानता है कि एक को दूसरे से अलग करना असम्भव
है ।
फिर वह कर्ता कौन है? इस विपय में मम्मट की उक्तिने
संशय उत्पन्न कर दिया है, जिस से साहित्यकों में मत-सेद है। अपने
अन्थ 'काब्य प्रकाश! के श्रारम्भ सें उन्हों ने लिखा है-- “कावब्य॑
यशसे<र्थकृते । कालिदासादीनासिध यशः। श्रीहषदिर्घावकादीनामिव
অনমূ।১ कहीं कहीं 'घावक! के स्थान पर “बाण”! का भी नाम है *
जिस से पिशल आदि कई विद्वान शावकः को चौर हॉल तथा ब्युद्धर
आदि कई महानुभाव बाण! को इन नाटकों का कर्ता मानते हें ।
“अरथकृते”” ही उनके इस निश्चय का आधार है। उन का कहना है कि
दन्दो ने लिखकर धन के लिए इन को राजा हषं के पास वेच दिया,
जिस ने अपने नाम के नीचे प्रकाशित किए । परन्तु ऐसा समझना
आलन्ति दै । मम्मट को उक्ति तो श्री हप की उदारता और दानशीलता
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