हजारी माल ग्रंथमाला का भाग 3 | Hajari Mal Granthmala Ka Bhag 3

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Hajari Mal Granthmala Ka Bhag 3 by मंगलचंद मालू - Mangalchand Malu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[২] प्रभू विरद विचारे सायत्रा। कड ग्रहों गरीब निवाज । शरण तुम्हारी श्रायोहो ! हुं दाकर निज चरना तसो । महारो सुखिये श्ररज प्रवाज ॥। श्री ० ६ ।॥ तु फरुणा कर ठाकर हो। प्रभु घरम -दिवाक्र जग गुरू । केइ भव दुपदुकृत टाल। विनयचंदने श्रापो हो । प्रमु निजगुण संपतसतास्वती प्रम दीनानाथदयाल ।। श्री० ७।। इति ॥॥ २-ओीच्रजितनाथजीका स्तवन ॥ ढाल कुविसन मारग माथे रे घिग ॥ ए दशी 11 श्नौ लिन श्रजित नसौ जयकरी । तुम देवनकौ ` देवजो । जय शन राजाने विजाया राणो कौ। श्रत्तम जात तुमेचजी । श्री जिन श्रज्ित नमो ' जयकारी (1 देर ॥ १ ॥ दूजा देव श्रनेरा जगमें, ते मुझ दाय न शआावेजी ।। तह, सन तहु चित्त हमने एक, तुहोज भ्रधिक सुहाबेजी 1 श्रो० २ ॥ सेव्या देव घणा भव २ में। तो पिशा गरज न




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