पत्तियां | Pattiyan

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Pattiyan by शिव कुमार सिंह सहाय - Shiv Kumar Singh Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्तिया | १७ ফলো ই । दूसरा धर वडी मुशिक्रिल से अषना वनता है । पर आजमेरा यही घर है । मेरी सारी उमर यही बीती, और जितने दिन बाकी है, वह भी यहीं बीत जायेंगे । कुछ दिनो वाद तू भी सब समझ जायेगी ।”” মহ্‌ कह माँ ने प्रतिया को अपने गले से लगा लिया, और हलकी- हलकी थपकी देते हुये चुप हो गई । अपने-पराये का सब भेद माँ की यपकियो नै भूला दिया । पतिया चुपचाप पड़ी रही । न हिली, न इती। उसे इसका भी पता नही चला कि इसी अवस्था में पड़े-पड़े उसे कब नींद आ गई । प्रतिया सो गई। माँ अभी भी जाग रही थी । उसकी आँखों मे नींद नहीं थी ।




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