रूहेलखण्ड की लोक संस्कृति | Ruhelkhand Ki Lok Sanskriti

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Ruhelkhand Ki Lok Sanskriti by उदय प्रकाश - Uday Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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) डलिया निर्माण : रुहेलखण्ड क्षेत्र के गाँवों में डलिया निर्माण क प्रमुख दस्तकला है। यह डलिया विभिन्‍न 'गों और डिज़ायनों में बनाई जाती हैं। ग्रामीण परिवार की महिलाएं इन डलियों को बनाने † अत्यन्त निपुण होती है । इन डलियों का निर्माण भरा नामकं जंगली घास से निकली एक विशिष्ट प्रकार की छाल (बरुआ) से किया जाता है| यह जंगली घास यहाँ के गाँवों में आसानी से उपलब्ध है। सर्वप्रथम बरुआ की छाल की गोलाकार (रस्सी की आकृति के समतुल्य) बत्तियाँ बनाई जाती है । अब इन बत्तियों पर विभिन्न प्रकार के रंग लगाए जाते हैं। ये रंग विशिष्ट प्रकार के होते हैं तथा इनको गर्म पानी में घोलकर तैयार किया जाता हे ताकि यह पक्के बने रहं | उपयोगी होती दै | (1) चटौनी निर्माण : परजा तथा भोजन के दौरान बैठने के लिए आसन के रूप में प्रयुक्त चटौना रुहेलखण्ड की ग्रामीण कला का एक ख्य अंग है। ग्रामीण परिवार की लड़कियाँ तथा महिलाएं चलैना बनाने में विशेष रूप से दक्ष होती हैं । इनको बनाने में भी भरा नामक जंगली घास से प्राप्त बरुआ की छात्र प्रयुक्त होती है। डलिया निर्माण की भाँति चलैने को बनाने में भी सर्वप्रथम बरुआ की छाल की गोलाकार लम्बी वत्ती बनाई जाती हैं| अब इन बत्तियों पर गर्म पानी में पृथक-पृथक घोलकर तैयार किए गए विभिन्‍न रंग लगाए जाते हैं। रंग सूख जाने के उपरान्त उस बत्तियों को चक्राकार घुमाते हुए तथा बत्ती की परतों को आपस ন संयुक्त करते हुए चलैने को अन्तिम रूप दिया जाता है। चटौने को आवश्यकता के अनुरूप किसी भी आकार में बनाया जा सकता है। ये चटौना अत्यन्त हल्का तथा आरामदायक होता है। इसकी खूबसूरती के कारण लोग इसे अपने घरों में सजावट के लिए भी प्रयुक्त करते है|




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