मैथली लोकगीत | Maithali Lokgeet

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Maithali Lokgeet by रामइकबाल सिंह 'राकेश '- Ram Iqbal Singh 'Rakesh'

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामइकबाल सिंह 'राकेश '- Ram Iqbal Singh 'Rakesh'

Add Infomation AboutRam Iqbal SinghRakesh'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ভে भोजन, और आदार बिहार जिस तरद जीवन का आवश्यक अग हैं, इसी तरद मीठे नैसर्थिक गीतों का श्रेम-गान भी यहाँ के लोगों के जीदन का दैनिक शतन बन गया षै पूसवन, सीसस्तोतयन, शिशु-्जन्स, उपनयन, विवाद आदि पोडश सस्कारों की बात का ते| कदना हो क्या £ সার 5 दुपहरी, सध्या, मध्यनिशा आदि मिज्र+मित्त समय के लिए भी मदाँ मित्र शिक्र शैली के यीत ईजाद किये गये हैं । नववयस्क और थुवक- युवतियों के अतिरिक्त यहाँ छोटे-छोटे बच्चे भी स्वयोय सगोत को माकार से स्थानीय दाठावरण को प्रतिष्दनित करते रहते है ) वे अपनी काब्य-सहचरी को मिट्टी के पक- बान बना कर तृप्त करते, और “ओं माला! तया “करींदे' बी लटबन ले सफ़र पर धूल के रगमइल में उसके साथ कीड़ा करते दें মিথিলা ক হল आमीण गीतों फो पुनरुणीवन अ्रदान करने का अधिक श्रेय शरन-उत्सवों ओर हिन्दू पर्व-स्योद्ारों को है। ख़गीतमय हिन्दू-त्योह्ारों मे र्ता-बन्धन, सोन, यम छ्वितीपा, दीपमालिफा और छठ उल्लेखनीय हैं । फजरों के दश जो अपने फाफ़िलों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पड़ाव डालते फिरते है, पुरातन शेक. मपो कं वलते फिरते पुम्ठकालय छ । रूग्ल-ठत्मयों पर जर) च जा चदा कट्‌ मगलात्मक यधाई गीत गाना इनकी जीविका का साधन है। लोक-गीतों को प्रोत्सादन देने में मुसन्‍्मानों फे करुण्य घुर-दुर्द सर्सियों का भौ, जो भुदरंग के दिनों में दसन-हुसैन की याद भे गाये जाते है, बड़ा जबरदस्त द्वाथ दै। द्वाजिये की निश्चित तियि से कई-कई दिन पूर्व दी बांस की खपार्ं के बने बाजे बजा-बता कर हिस्बूमुशलमान सम्मिलित स्परों से गान करते है, और उक्त तिथि के पहुँचने पर रंग बिरंगे कागज़ के बने ठाज़ियों को मिर पर लेकर स्लो पुधपों फी टोलियाँ क्षमीदारों के दरबारों की केरी सगातों दै। कर्दला की मबेदनाशील आभिव्यजना के साथ-ताथ इनमे वीर रस कौ लडाइयो का भी पुरजोश शि श्राया दै, जिनका एक-एक शफ़्ज़ इस्ताम के घुलन्द सितारे की दुन्दमि है। तपे अज़ारो-से जलने ऊबड़न्खाबद खेदा न दिन-मर च्यम कर लगे मरौर सयदूर्‌ स्या को थङेमदि चूर लोटने द १ श्यौर भोजनोपरान्त रारि ये কাল, পদক




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now