श्री हरिप्रेष्ठ - महाकाव्यं | Shriharipresth Mahakavyam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Shriharipresth Mahakavyam by वनमालि दास शास्त्री - Vanmalidas Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वनमालि दास शास्त्री - Vanmalidas Shastri

Add Infomation AboutVanmalidas Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
# प्रथम्‌ सगं % [ ५ पञ्चाद्‌ विलोक्य पदयो. किल लिदधरेलापु्स्य तस्य लघु गोप्पदचिह्वमेकम्‌ । बिद्ासुवाच पित्तरं प्रति ह्॒षपुक्त'पुजस्तवाउत्ति-शुभ-लक्षण-लक्षितोज्यपु ॥९७॥ गेहाद्‌ व्रजिष्यति वन हरिप्राप्तिहेतो , पु्नो युबेति तब जत्पति सिद्धरेखा 1 संसारसिन्धुमतितीर्य हरि च गन्ता, गोवत्सपाद्मिव गोप्पदचिक्ृमाह ॥१८॥ विद्वान महानपि भविष्यति पुनकसने, दृष्ट्वा चं दीनजनमेप दयिष्यतेः्लम्‌ । शनौ सदा व्यवहरिष्यति मित्रतुत्य॑,र्भाक्ति चं दास्पति हगादपि जीवकाय ॥१६॥ विश्वासमेष्यति सदा बचने ग्रुरूणों,मार्मे पद नहिं घरिष्यति भक्तिहीने । प्रीति करिष्यति सदा भुवि साधुलोके,वराग्यरागरसिको भविता च नूनम्‌ ॥२०। फॉस्कानु ग्रुणाँस्तव सुतस्य गदामि धीमन्‌ ?! श्रीकृष्ण-केलिनिलयेप्जनि.. भूरिसाग्यात्‌ 1 योपत्रऽप्य जन्म स पुणी नितरां _ महात्मा यत्रोदढवो विधिरपौच्छति जन्म तार्णम्‌ ॥२१॥ उसके बाद, भामकरण-सस्कार करनेवाला पण्डित, भीपूलिरामजी के पुतव के चरणों मे, सिद्धरेखा को देखकर एवं एक छोटे-से गोप्पद (गोबुर ) के चिह्न को देखकर, उनके प्रति हर्पपूवंक बोला कि, “तुम्हारा यह पुत्र, अतिशय शुभ लक्षणों से युक्त है!” ॥१७॥ देखिये । तुम्हारा यह्‌ पुन, श्रीहरि की ्रात्नि के कारण, युवाषस्था मे ही अपने घर को छोडकर, श्रीवृन्दावन कौ चला जायगा इस वात को, इस के चरण में विद्यमान, यह सिद्धरेखा ही स्पष्ट कह रही है, और यह “अपार ससार-सांगर को, वछड के चरण से बने हुए गड्ढे की तरट्‌, अनायास पार करके, श्रीहरि को प्राप्तकर लेगा” इस बात को, इस वे चरणो मे बना हुआ, यह गोंप्पद (गोखुर) का चिह्न कह रहा है ॥१5॥ और तुम्हारा यह पुन, महान्‌ विद्वान होगा, एवं दीनजनों को देखकर, उनपर महान्‌ दया किया करेगा, अपने शत्रु के ऊपर भी, सदा मित्र के समान ही व्यवहार किया करेगा, तथा जीवमान के तिये, हष्पूर्वक भक्ति का दान किया करेगा ॥१६॥ और यह तुम्हारा लाला, “गुरुओं के वचन मे सर्दव विश्वास किया करेगा, एवं श्रीहरि की भक्ति से रहित मार्ग मे, एक पर भी नही घरेगा तथा भ्ूतलपर विद्यमान साधुजनमात्र मे सदैव प्रेम किया करेया, अत्तएव यह युवावस्था मे ह, वैराग्य-साग का रसिक हौ जायगा” पहु बात निश्चित है ॥२०॥ हे घीमन्‌ 1 तुम्हारे इत पून के कौन-कौन-से गुणो का वर्णन कू? कथो देखो, श्रीकृष्म की लीला-स्य नीस्वल्प इस ब्रज मे, महानु भाग्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now