प्रणय पत्रिका | Pranay Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रणय पत्रिका * द सौरभ के बोभे से अपनी चाल समीरण साधे, कुछ न कहो इस वक्‍त उसे,वह स्वर्गं उठाए काधि, बंधी हुई मेरी कुछ साँसों से भी मीठी सुधियाँ, जो बीत चुकी क्या उसकी याद दिला) क्या गाऊँ जो में तेरे मन को भा जाऊं । (४) भरा-पुरा जो रहा जगत सं उसने ही मुँह खोला, | एक अभावों की घडियों में भाव-भरा में बोला, इसीलिए जब गांता हूँ में मौन प्रकृति हो जाती, लोकिक सुख चाहे दैवी पीर जगाऊँ ॥ না বাত আ में तेरे मन को भा जाऊे ॥ २१५




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