मेरा सपना | Mera Sapna

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Mera Sapna by श्री चन्द्रदत्त अवस्थी - Shree Chandradatt Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शम-कृष्ण की संस्कृतियो के वीर वंशधर बोलो इस क्षण; जीवन-धन मिल रहा शून्य में लुप्त हुये जाते गौरव क्षण! सोन होरहे हो क्यो इस विधि न्धकार क्‍या छा जावेंगा ? बीरो का इतिहास आज क्या क्षण भर में ही मिठ जावेंगा ? किससे पुष्‌ क्या कहूं हाय, अब पास नहीं मेरे कोई 11 आग लग रही भीतर बाहर मति गति धृति सब कुछ ই खोई । पाठक देखे, कितनी विकलता है इन भावोद्गारो मे । जब कवि एक द्रष्टा की भाति कहता है : बुझा न्याय का दीप, खड़ा है मानव आज अकेला पथ पर; दूर कहीं उस पार देखता रुड>मुंड का मेला पथ पर। चांद गगन में आता जाता, किन्तु न अब वह सुस्काता हैं; जलता रहता सूर्य गगन में पर न प्रकाश जगत पाता है। आज के युद्ध-लिप्सु संसार का त्राप्दायक चित्र आंखों के सामने नाच उठता है । कवि अत्यन्त भाव-प्रवण है । इसी लिये जब सारा जग हिसा के विविध सम्मोहक एवं




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