मेरी यूरोप की यात्रा | Meri Europe Ki Yatra

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Meri Europe Ki Yatra by घनश्यामदास विड़ला - Ghanshyamdas vidala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाकाथन १७ बताता करोड़ मनुष्यों की दे, वर्तमान भारतवर्ष के क्षेत्रफल से लगभग छुगना शोर जनसंख्या में सवाया है श्ौर यदि देश रुख को टाल दिया जावे तो भारतवर्ष से दर तर छोटा होता है फिर भी चहद केटीनेन्ट महाद्वीप कहलाता दे श्र भारतच्प पशिया का पक भाग दी है। यद्यपि यूरुप के नाम से कोई महासागर नदीं दे और भारतवर्ष के नाम से दिन्द-महासागर बहुत प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध दे । यद्द मद्दाद्दीप दो दरजन राज्यों से श्धिक राज्यों में विभक्त है । इनमें से ारधों से अधिक के मुख्य नगयें में मैं गया । यों तो दर देश में कुछ न कुछ भेद दोता ही दे परन्तु खान, पान, पदनाव 'छोर रददन सदन के ढंग में यूरुप के सब राज्यों में ससानता देखी । श्रेट न्रिटेन में वाज़ारों छौर सड़कों के किनारे काफेज घोर रेस्ट्रेंट्स एवं विश्ान्ति गृहों में तीसरे पदर के याद वेठकर नरनारी पना दिखावा नहीं करते; परन्तु मध्य यूरुप में, जिसको वहां की भाषा में कांटिनेन्ट दी कहते हैं, यदद मेरी दृष्टि में एक वड़ी कुपथा हे । यद्यपि वोली राज्यों की मिन्न २ है तथापि ंप्रेज़ी जानने चाले यूरुप के प्रधान नगरों में जद्दं तहां मिल जाते हैं छोर कोई झाड़चन नहीं हाती । सब राज्यों का सिक्का झालग ९ दे परन्तु सीमा प्रांत के स्टेशनों पर और सगरों के मुख्य वाज़ारों में सराफों की कुछ डुकानें हैं ज्ं ज्रिटिश सिक्का उसी वक़्त भुनाया जा सकता दे । श्र चहुधा होटल वाले भी ब्रिटिश सिक्के, पाउंड, शिलिंग, पेंस को श्रपने राज्यों के सिक्कों में उस दिन के वाज़ार भाव से परिवर्तन फर: देते हैं, परन्तु भारतवर्ष का सिक्का श्रद्स तक ही चलता है। इजिप्ट में भी ऐसे पक दो बैंक हैं जो कसर देकर वदला कर लेते हैं। इन यूरूपियन देशों में ययपि भाषा मिन्न २ है




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