सांख्यसुधा | Saankhy-sudhaa
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
भावात् की रचना करते ओर कहते कि ईश्वर का अभाव है।
परन्तु उनका ऐसा न करना ही यह् प्रगट करता हे कि वह ईखर
से इन्कारी नहीं थे | जब वह कहते हैं कि ईश्वर असिद्ध हे, तो
उनका मतलब यह है कि ईश्वर बाह्यसाधनों द्वारा सिद्ध नहीं
किया जा सकता । युक्तियों द्वारा, प्रत्यक्षादि प्रमाणों द्वारा उस
की सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि ईश्वर इन्द्रियातीत है । उसके
जानने का साधन भी इन्द्रियातीत होना चाहिये। कपिलाचार्य
योगियों के अब्ाह्मप्रत्यक्ष में कोई दोप नहीं देखते, इसीलिये
वह लिखते हैं--
“योगिनामबाह्यप्रत्यक्षात्वान्न दोष:
योगियों के अब्राह्यप्रत्यक्ष द्वारा यदि इंश्वर को जाना जाय
तो उसमें कोई दोष नहीं । इस अबाझ्य प्रत्यक्ष को वेद में मेधा.
उपनिषद् मे प्रतिबोध, योग मे ऋतम्भरा प्रज्ञा अर अंग्रेज़ी में
[00010018 का नाम दिया गया है। मनुष्य के अन्दर दो प्रकार
की बुद्धि हे, एक पार्थिब बुद्धि ओर दूसरी सहज बुद्धि या
नैसर्गिक बुद्धि । पाथिव बुद्धितो संसार क पदार्था को जानने
की शक्ति रखती है श्रोर सहज वुद्धि दिव्यता की द्योतक हे । बह
पुण्यात्मा प्रो मेँ स्वतः जागृत হীলী ই। জিন पुरुषों का हृदय
मल्ल-रहित हो गया है, जो शान्त हैं ओर समाहित हो सकते हैं,
उनके अन्दर इस नेसगिक बुद्धि का प्रकाश होता है। कपिल
मुनि कहते हैं कि ईश्वर को जानने ओर सिद्ध करने के लिये
इसी बुद्धि का आश्रय लेना आवश्यक ह ।
धो
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