बाजे पायलिया के घुँघरू | Baje Payaliya Ke Ghughru

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Baje Payaliya Ke Ghughru by कन्हैयालाल मिश्र -Kanhaiyalal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाज पायलियाके घुँघर दुण्टरबैल' प्रदेपर और वे दरवाजेपर, चायवाखाः साथ । हमने चाय पी, परान खाये। উ उस गरम चादरको पत्तीके कन्धौपर डाक, फिर चके गये और खेल खत्म हुआ कि वे फिर दरवाज़ैपर--सान साथ ! चान्दनेमें दोनोको एक साथ ग्रौरसे देखा। नारीमे सरलता भी है बडुप्पत भी । उसकी मुसकानसे आकर्षण है, जो! बेधक त' होकर मोहक है} बातचीत वे खुली है. पर इस खुलेपनम कही' भी हल्कापन नही, जशञाली- जता ही है। मैने उन्हें बडी बहुन कहा, तो पूरे मनसे ही कहा। पुरुषमे सौस्यता है। वे धीमे बोलते है, पर पूरी मिठासके साथ। उनकी हर बातमे एक सयम हँ । हे च्छे गये. मे श्रपने प्रश्नौका उत्तर पा गया! एक वेश्यां : उसके पास जौ भ्राता है, वही अपनी बात मनवानेके लिए। ठीक है, वह पैसा फेकता ही इसलिए है कि उसकी हर इच्छाको हाँ सुनाई दे। पैसेकी शक्तिके सामने सिर भुकानेकी शिक्षा वेश्याकों दी जाती है, वह सिर भुकाती है, प्र उसके हृदयकी प्यास उससे पूछती हँ--- क्या इस स्सारमें ऐसा कोई नहीं, जो मेरी इच्छाके सामते भी सर झुकाये ? अपने सामने मरी इच्छाको महततव दै? इस पुरुषम यह गण हं करि श्रपनेको मूरुकर, दुसरेका व्याच ব্রন আহ यही बहू रसायन हैँ, जिसने वेश्याक्तो पत्नी बना' दिया। 1 ६ ] यों मेरे सब प्रश्नोंका समाधान हो गया, पर तभी एक नये प्रदतने मुभ श्रा घेरा--गिरता श्रास्तान है, गिरकर उष्ना कठिन, यह नारी गिरी, गिरनेकी हृदतक गिरी और उठ गई--उठतेके ऊँचे-से-ऊेचे भिखरतक। एक स्वस्थ दर्शकके मनसे यि्रावटकें लिए दया और उठावके लिए प्रशंसाकी भावता उठनी चाहिए, पर यह क्या बात हैं कि वेब्याके युहिणी श




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