महिला उपन्यासकारों के प्रतिनिधि उपन्यासों का कथ्य एवं विमर्श | Mahila Upanyaskaro K Pratinidhi Upanyashon Ka Kathya Avam Vimarsh

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Mahila Upanyaskaro K Pratinidhi Upanyashon Ka Kathya Avam Vimarsh by अर्चना व्यास - Archana Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(कः) नारी उपन्यासकारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : “नारी की सदा से अपनी सत्ता महत्ता रही है। नारी केवल मांस पिण्ड की संज्ञा नही हे। आदिम काल से आज तक विकास पथ पर पुरूष का साथ देकर, उसकी यात्रा को सरल बनाकर, उसके अभिशापों को झेलकर और अपने वरदानों से जीवन में अक्षयशील भरकर मानवी ने जिस व्यक्ति चेतना ओर हृदय का विकास किया है उसी का पर्याय नारी है |“ स्त्री ओर पुरूष भले ही एक दूसरे के पूरक हों, किन्तु दोनों की शारीरिकता तथा मानसिकता मेँ अन्तर हैँ । शारीरिक दृष्टि से जिस तरह नारी अंगों का झुकाव कोमलता की ओर है, वहीं पुरूष अंगो का झुकाव कठोरता की ओर है| इसी प्रकार मानसिक दृष्टि से जहाँ पुरूष में विजय की भूख होती है, वहीं नारी में समर्पण की। पुरूष जहाँ लूटना धि | ই स्त्री वही लुट जाना चाहती हे | फिर भी वह रनेह व सौजन्य की प्रतिमूर्ति होती हे। वह वाणी से जीवन को अमृतमय कर देती है। उसका हदय सन्तप्तों को शीतल छाया देता हे! उसका हास्य निराशा की कालिमा को पोछकर आशा की किरणे बिखेरता है यष्टि नारी वर्तमान के साथ भविष्य को भी हाथ में लेले तो वह अपनी शक्ति से बिजली की तड़प को भी लज्जित कर सकती है। आदि काल से ही नारी जीवन के विभिन्‍न क्षेत्रों में पुरूष के साथ चलती रही है । अधिकांश सभ्यताये ओर संस्कृतियों अपने आदिम युग में मातृ सत्ता प्रधान रही है! जीवन के विविध क्षेत्रों में नारी का योगदान रहा है। वेदों में लोपा मुद्रा एवं गार्गी सी मन्त्रदृष्टा नारियों की भी चर्चा है| स्पष्ट है कि 1 महादेवी वर्मा, दीपशिखा, भूमिका ‡ 0 शीतल प्रभा वर्मा -महिला उपन्यासकारं की रचनाओं मेँ बदलते सामाजिक संदर्भ पृष्ठ-17




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