परित्यक्ता महिलाओं का मन: सामाजिक अध्ययन | Paritykataa Mahilaon Ka Man Samajik Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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का आधा अंग, श्रेष्ठम सखा और मित्रों में उत्तम होती है और वही धर्म, अर्थ, काम का मूल
है ।' मनुस्मृति में भी स्त्री ओर पुरुष को अभिन्न मानते हुए कहा गया है कि केवल पुरुष अपने
मे अपूर्ण ही रहता हे किन्तु स्त्री स्वदेह तथा संतान-ये तीनों मिलकर ही पुरुष पूर्णं रूप) होता
है । एसा वेद ज्ञाता कहते है ओर जो पाते हँ वही स्त्री हे अत्तएव उस स्त्री मेँ (परपुरुष से भी}
उत्पन्न संतान उस स्त्री के पति की ही होती है।स्त्री की श्री (लक्ष्मी) से समानता स्थापित
करते हुए कहा गया है कि संतानोत्यादन के तिए वस्त्राभूषण से आदर सत्कार के योग्य घर
की शोभा रूपणी ये स्त्रियां और लक्ष्मी घरों में समान हैं। जिस प्रकार शोभा के बिना घर सुन्दर.
नहीं लगता उसी सी प्रकार स्त्री के बिना घर सुन्दर नहीं लगता। अतः श्री तथा स्त्री में कोई भेद 0
नहीं है!
द . वैदिक और उत्तर वैदिक काल के पश्चात हमारे समाज की मौलिक व्यवस्थाएं
परम्पराओं एवं रूढ़ियों के रूप में परिवर्तित होने लगी जिसके परिणामस्वरूप स्त्रियों में लज्जा, रे
ममता और स्नेह के गुणों को उनकी दुर्बलता समझकर पुरुष ने उनका मनमाना शोषण प्रारम्भ
'कर दिया। ऐसी प्रवृत्तियों को स्मृतिकारों और धर्मशास्त्रकारों का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण...
स्त्री धीरे-धीरे पंरतंत्र, निस्सहाय और निर्बल बन गहे
भारतीय वाड्न्मय में नारी पर कामांधता का आरोप करते हुए, उस पर हर-दर्ज का...
अविश्वास प्रकट किया गया | पद्मपुराण के अनुसार स्त्रियो इसलिए साध्वी रहती हैं कि उन्हें .
` गुप्त स्थान नहीं मिलता, अवसर नही मिलता ओर उनसे प्रार्थना करने वाला कोई पुरुष नहीं .
होता ॥ मध्ययुग -के संस्कृत साहित्य में स्त्रियों को परपुरूष को छलने, बहकाने, धोखा देने,
अत्याधिक कुटिल तथा कामुक होने का दोषारोपण है। ब्राह्मण ग्रन्थों के कर्मकाण्ड-प्रधान धर्म.
ক के विरुद्ध विद्रोह करने वाली तथा प्रवज्या और त्याग पर बल देने वाली बोद्ध एवं हिन्द्
` विचारधाराएं भी स्त्री की स्थिति को गिराने में सहायक हुई । `
1. महाभारत. आदिपर्व, 1,/74८41
2. मनुस्मृति, 9८45
3. मनुस्मृति, 9८26 `
4. वेदालंकार, हरिदत्त हिन्दू परिवार मीमांसा, पृष्ठ 79. , ` ८
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