प्रवचन रत्नाकर | Pravachan Ratnakar

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Pravachan Ratnakar by डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल - Dr. Hukamchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवादक की ओर से जब परमपूज्य आचार्यों के श्राध्यात्मिक ग्रन्थों पर हुए पूज्य ग्रुदेवश्री कानजी स्वामी के गूढ़, गम्भीर श्रौर गहनतम, सूक्ष्म, तलस्पर्शी प्रवचनों का गुजराती से हिन्दी भाषा में अनुवाद करने के लिए मुभसे कहा गया तो मैं असमंजस में पड़ गया । मेरी स्थिति साँप-छछू दर जेसी हो गई । मैंने कभी यह सोचा ही नहीं था कि यह प्रस्ताव भी मेरे पास कभी ग्रा सकता हैं । म्रब एक श्रोर तो मेरे सामने यह मंगलकारी, भवतापहारी, कल्याणकारी, आत्मविशुद्धि में निमित्तभूत कार्यं करने का स्वणं श्रवसर था, जो छोड़ा भी नहीं जा रहा था; तो दूसरी श्रोर इस महान कार्य को आद्योपान्त निर्वाह करने की बड़ी भारी जिम्मेदारी । और मेरी दृष्टि में यह केवल भाषा परिवर्तन का सवाल ही नहीं था, बल्कि आगम के अभिष्राय को सुरक्षित रखते हुए, गुरुदेवश्नी की सूक्ष्म कथनी के भावों का अनुगमन करते हुए, प्रांजल हिन्दी भाषा में उसकी सहज व सरल अभिव्यक्ति होना मैं ग्रावश्यक मानता था। अन्यथा थोड़ी सी चूक में ही श्रर्थ का अ्रनर्थ भी हो सकता था । इन सब बातों पर गम्भीरता से विचार करके तथा दूरगामी श्रात्म- लाभ के सुफल का विचार कर प्रारंभिक परिश्रम और कठिनाइयों की परवाह न करके 'गुरुदेवश्नी के मंगल आशीर्वाद से सब अ्रच्छा ही होगा' - यह सोचकर. अन्ततोगत्वा मैंने इस काम को अपने हाथ में ले लिया । इस कार्यभार को संभालने-में एक संबल यह भी था कि इस हिन्दी प्रवचन- रत्नाकर प्रन्थमाला कै प्रकाशन का काये प° टोडरमल स्मारक टुस्ट जयपुर ने ही संभाला था और सस्पादन का कार्यं डँ° हुकमचन्द भारिल्ल को सौंपा जा रहा था । यद्यपि गुजराती भाषा पर मेरा कोई विशेष अधिकार नहीं है, तथापि पूज्य गुरुदेवश्री के प्रसाद से उनके गुजराती प्रवचन सुनते-सुनते एवं उन्हीं के प्रवचनों से सम्बन्धित सत्साहित्य पढ़ते-पढ़ते उनकी शैली और भावों से सुपरिचित हो जाने से मुझे इस अनुवाद में कोई विशेष कठिनाई नहीं ( १३ )




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