मध्यस्थ बोलकी हुंडी | Shri Madhyasth Bolki Hundi

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Shri Madhyasth Bolki Hundi by मुनि चतुरभुज - Muni Chaturbhuj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मर ( १३) अथ १५ वाल - सखो घटी हुवे ते जगा अन्तमुंद्र्द दालणी, केई হালি नहीं द सेहनो उत्तर--उत्तराध्ययनसूत्र अध्यपन १६ में!1 खी खाये एक भासन पोड पग रिणो उपर चेसे नहीं | तथा अर्थमें লী बेदी हुवे ते जगा मी संतत रालणी । कैद सतसुंदचं यछ नहीं। संवसतः जघन्य स भारी फद्ीनि स्री चैडफै उ जय साधु जद॒का जद यठे छे घेठगरी थाप पिण फ्रेछे इमहौज साध्वी पुयप बेटे जदे पिण बैंठे छे बेठवारी थाप पिण फरेछे येठ घारे ठिकाने अंतमुंदृत्त समारे नहों। अठे तो अंतमुहुसे जघन्य धक घडर्मे ठेरी समये ! उत्दृ्टी दोय घष्टी में ठेरी स'भय्रे छे। विस्तांर तो बडी हुंडीमें छ ॥ १५ बोल || अथ ९६ बोल -. योसर ध्या পুর घासते मिठाई आदि जो चीजा फीधी से ज्ञान प्रमुष जीग्या पद्देली रावणी नहीं | तथा घंणा छोप जीमे चदां गीवरी जायणो नर्द तेदनो उचर--जञ दिशा जीमणचार दो उससे पश्चिम दिशामें जावणों ! इमद्दीज चार दिशामें आवणो 1 पछुघडीने आण आई दैतों थक्रो मीचरी ज्ञाय इत्यादि घण्णों पिस्तार छो। साथ सूत्र>'आचाराग दूजे अध्ययन पहेंटे उदे पटे तथा धणा छीक जीँ तथा यतते पिषे जीमणवार यदी बा उभो रदेंणों न्दीं। साजसूत्र उत्तराध्ययत अध्ययन पहले याथा ३२ भः } जना रौन পনি শা এশা ওরা প্রি এ,




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