व्यक्तित्व | vyaktitva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यक्तित्व क्या है १६ ~प से उनका जीवन अपू दोता है। इतना ही नहीं, आन्तरिक जीवन की माँग को दबाने के लिए ते निरन्तर अपने को बढ़ती हुई कार्यशीलता में फेंकते जाते हैं। यह सब होते हुए भी बहि- सख व्यक्ति अपने विचारों को अपने चारों तरक़ की वास्‍्त- विकता के अनुकूल बनाने का प्रयत्न करते हैं. । ऐसे व्यक्ति पर परिस्थितियों का प्रभाव शीघ्र पड़ता है। चूँकि उसके जीवन का लक्ष्य ही अपने को जीवन की माँगों के अनुकूल बनाना द्वीता है, वह अपने वातावरण में भली भाँति खप जाता है। उसके विचार सर्वसाधारण के तथा उसकी जीवन-शैली परम्परागत होती है। दुनिया किन गुणों की प्रशंसा करती है, इसे वह भली भाँति सममभता है। बातों का जवाब देते समय सहज मुसकान से उसका चेहरा खिल जाता है, उसके अंग-अंग से स्फूर्ति टपकती प्रवीर होती दै! ओर यदी कारण है कि अन्तमु ख व्यक्ति की अपेक्षा उसका व्यक्तित्व अधिक निखरा हुआ होता है। उसके ये गुण शीघ्र ही उसे जनता की निगाहों के सामने ले आते हैं। ज्ञोग उसकी प्रशंसा करते हैं; कहते दै, “उसका व्यक्तित्व असाधारण है ।' दृखरी तरफ, अन्तमु ख व्यक्त्ति मितभाषी होता है तथा उसमे कार्यशीलता का थोड़ा अभाव होता है। साधारणतः गम्भीर प्रकृति होने के कारण उसका हद्व शान्त नरह, वरन्‌ भावक होता है | वह निरन्तर विचारमग्न रहता है ओर यही उस




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