नव निर्माण की पुकार | Nav Nirman Ki Pukar
श्रेणी : ऐतिहासिक कथा / Historical fiction
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बालकृष्ण शर्मा - Balkrishna Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
एवं उपयोगिता मे चार चाद श्रौर लग गये ।'
चालीस दिन के श्रत्यन्त व्यस्त एवं व्यग्र कार्यक्रम से भी आचार्य
श्री--दिल्ली की जनता की नैतिक भूख को पुरा नही कर सके । लोगो
की प्रवल इच्छा थी कि श्राचार्य-श्री को श्रभी दिल्ली से ही कुछ दिन श्रौर
रहना चाहिये और श्रपनें प्रदचनोके लाभ से उसको वंचित नही करना
चाहिये । पिलानी के उदार-नेता सेठ जुगलकिशोर जी बिड़ला ने
भी श्राचा्य-भीसे दिल्लीमे कुछ स्थायी रूपसे रहने का अनुरोध
किया था । उप्त अउुरोध मे दिल्ली की जनता को श्राकाँक्षा एवं आग्रह
प्रतिब्वनित होता था, परन्तु सरदार शहर मे साघ महोत्सव के आयोजन
के कारण श्राचार्य-श्री का राजधानी मे श्रधिक दिन रहना संभव न
हो सका और दिल्लीवासियो को श्रतृप्त छोडकर आचार्य श्री ७ जनवरी
को सरदारद॒हर के लिए विदा हो गये । लौटते हुए श्रानेकी
अपेक्षा विहार मे कठोरता कहीं भ्रधिक उग्र हो गयी। वर्षा और
कुहरे की प्राकृतिक श्रडचनो से श्रधिक वडी श्रडचनं स्थान-स्थान पर
रुकने के लिए किया गया लोगो का भ्राग्रहु था। ्राग्रहु टाला जा सक्ता
था ; किन्तु वर्षा और कुहरे को कौन टालता ? इस कारण होनेवाली
देरी को विहार की गति बढाकर ही पुरा किया जा सकता था। रास्ते
में सर्दी का प्रकोप भी कुछ कम न था। आचारयं-श्री ने अपने जीवनकाल
में पहली वार नांगलोई मे सर्दी के प्रकोप की शिकायत की। সাল:
काल उन्होने कहा-“श्राजं तो इतनी सर्दी लगी है कि इसके कारण
रातभर जागरण करना पड़ा । यह पहला ही अवसर है कि इतने लम्बे
समय तक्र सर्दी के कारण जागना पड़ा हो । पर यह खेद की बात नहीं
है। खूब एकान्त का समय मिला। सनन, चिन्तन और स्वाध्याय मे
खूब जी लगा। ऐसा एकान्त समय मुझे कभी ही मिला करता है,
क्योकि सारे साधु तो गहरी नींद में सोये हुये थे 1”
चिन्तन, मनन झौर साधना को यह कंसी ऊँची भावना है ?
लौटते हुए पिलानी मे जो चार दिन का प्रवास हुआ उसका विवरण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...