अथर्ववेदभाष्यं भाग 5 | Atharwedbhasyam Part 5
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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No Information available about क्षेमकरणदास त्रिवेदी - Kshemakarandas Trivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সু? হ [৪৪] चच्चम काणर्ड्स ৪২৪ (८२७ ) *
दर्धाति । अवि-अनत् । च॒। वि-श्नत् । च। सस्नि।
सस् +'ते | লুজ । मन्स ता । सदबु ॥ २॥
ह 2
साथाथ-- ( शवसा ) बल से ( वद्गबुधानः ) बढ़ता हुआ, ( भूयाज्ञाः )
महावली, ( शत्र : ) हमारा शत्रु ( दासाय ) दानपात्र दास को ( भियसखम् )
मय ( इधाति ) देता है । ( अन्यन् ) मतिष्ूल्य, स्थावर, ( च ) श्रौर (व्यनत् )
गतिवाला जङ्गम जगत् ( च ) निश्चय करके [ परमात्मा में | ( सस्नि ) लपेदा
हुआ है, ( प्रशृता ) अच्छे प्रकार पुष्ट किये हुये घाणी ( मदेखु ) आनन्दों में
( ते ) तेरी ( सम् नवन्त--०-न्ते ) यथावत् स्तुति करते हैं ॥ २॥
भावा्थं- सर्वं शक्तिमान् परमेश्वर समस्व जगत् मं व्यापक होकर
सव को धारण करता है । उसी की महिमा को ज्ञानकर सव मनुष्य पुरुषार्था
पूवंक अपने विज्ञों का नाश करके प्रसन्न होवे' ॥२॥
त्वे क्रममपि एज्जन्ति भूरि द्वियंदे ते त्रिभंव॒न्त्यूमां: ।
% म | । লাল ॐ क है
स्वादेाः स्वादॉय: स्वादुनां सुजा सम॒दः सु লু লু
লাল येोची: ॥ ३ ॥
পা, मम
र-( चाच्धानः ) इधु-कानच. । वध मानः ( शवसा ) श्वेः सम्प्र-
सारण च । उ० ४ । १५३ । इति दुश्रोद्व गतिष्द्धयोः-श्रन् । शवः वलम्-
निघ० २।६। बलेन ( भूर्योजाः ) बहूबलः ( शत्र; ) शातयिता । रिपुः । विघ्नः
( दासाय ) दासु दान-घञ् । दानपरा्ाय सेवकाय ( भियस्म् ) दिवः कित् |
उ० ३ । १। १८९ । इति जिमी भय-अस्तच् । मयम् ( इध्राति ) ददाति (अव्य
नत् ) श्र+वि + श्चन प्राणन, गतौ च-शतु | अनिति गतिकर्मा-निघ० २। १७ |
गतिश्ुन्यं स्थावरं जगत् ( च ) ( व्यनत् ) विविधं गतिवज्ञगमं जगत् (च)
अवधा र णे ( सस्नि ) आहगमहनजनः किकिनो लिटय | पा० ३1२। १७९।
गे वेष्टन--किन् | यद्वा, ष्या शौचे--किन | आते लोप इटि च | पा० ६। ४ |
६४ । आकारलोपः । सस्निं मेघं संस्नातम्-निरू० ५। २} परमात्मनि
देष्टितम् (ते ) तुभ्यम् ( सम् नवन्त ) छान्द्समात्मने पद लटि रूपम्। नवते
गतिकर्मा--निघ० २। १४। नवस्ते नधन्ति । सम्यक स्तुवन्ति, संगच्छुन्ते वा
( प्रमुता ) प्रभुतानि प्रकषंण घ॒तानि पोषितानि वा ( मदेषु) हेषु द
ह
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