अमेरिका दिग्दर्शन | America Digdarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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एफ़० जे० हस्किन - F. J. Haskin
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स्वामी सत्यदेव परिब्राजक - Swami Satyadeo Paribrajak
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ऊ)
लगी हुई थी श्वैर उख ऋग के केवर अमरीका जाने की धुन
ही बुझा सकती थी, इसलिये भद्ता मैं किसी की बात कैसे
खुद सकता था। मैंने प्रणथ कर लिया कि चाहे कुछ ही क्यों न
हा, में अमरीका ज़रूर प ईचूगा। यहां में अपने प्रेमी मित्रों से
भी मिलो और उनसे अपनी चुन का जिक्र किया। उत्साह
वर्धक शब्दों से उन्दोंने मेरी कोली भर दी और मैंने उसी के।
सहष स्वीकार किया | आय-समाज का जखसा समाप्त हो गया
ओर में काशी छौट आया |
द्रिस्वर का खारा महीना मेरा शआमरीका के स्वत देखते
चीता | रात के समय खोने से पहिले मैं आपने मन में यात्रा के
फर्जी चित्र बनाता और इदिगाड़ता था। सन् १६०४ ई० की
पदिखी जनवरी का दिन मैंने काशी छोड़ने का पक्का कर लिया |
मेरी घन की पूंजी केवर पन्द्रह रुपये थी, लेकिन मेरे पास
इरादे को दृढता का भरपूर खज़ाना था । आखिर पदिली जन-
बरी का दिन आ गया। बाबू दुर्गा प्रसाद जी से प्रेम पूर्वक
विदा माँग कर पसात की गाड़ी से मैंने काशी से प्रस्थान
किया ! काशी छोड्ते समय मेरे हृदय की छडाजीब हालत थी---
साधनद्दीन में संखार-संग्राम के लिये जा रहा था। मेरे अन्द्र
जो उछल कूद हा रही थी उसका वर्णन क्या लेखनी से क्रिया
जा सकता है ? जब गाड़ी डफुरिन ब्रिज से होकर चली और
मैंने काशी जी का प्रभाती दरृष्य देखा तो मेरी आँखों में आंसू भर
आये और मेरे मुँह से बेइरूत्यार यह निकर--
|
॥
खुश रहा अहते वतन हम तो सष्ट्र करते
दरा दीवार पै हसरत से नजर करते
हें
টি
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