कर्मविपाक अर्थात कर्मग्रंथ [भाग 1] | Karmvipak Arthat Karmgranth [Bhag 1]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)স্পট
“हैं। जिन शब्दों को-विशेष व्यास्या-अनुवाद-सें आगरह।है,
उन शब्दों का सामान्य हिन्दी अर्थ लिख,करके विशेष +व्यास्या -के
पृष्ट का नम्बर लगा दिया गया है। ,साथ हो*प्राकृत शब्द की
संस्कृत छाया भो दी हूँ जिससे संस्कृतज्ञों को बहुत सरलता हों
सकती है । कोप देने का उद्देश्य थहै,है क्रि आज कल प्राकृत
के सर्वव्यापी फोष की आवश्यकता समझो जा री ३. भौर
इसके लिये छोटे घड़े अयन्न भी किये जा रहे हैं । हमारा . विश्वास
'है कि ऐसे प्रत्येक ग्रन्थ के - पीछे दिये हुये कोष द्वारा झझस, कोष
चनाते में बहुत छृ्धं मदट मि सकेगी । महान् कोप बनाने वाले,
श्रव्ये देखने योग्य भ्रन्य पर उतनो बारीकी से ध्यान नहीं दे
सकते, जितनी कि धारीकी से उस एक एक् प्रन्थ को मूढ : मात्र
या अनुवाद सद्दित प्रकाशित करने वाटे ध्यान दे सकते हैं । -
तोमरे परिशिष्ट मे मूढ गाथाये दी हुई है जमसे श मूढ मात्र
याद् करने वार्थ को तथा मू मात्र का पुनरावत्तन करने बाटो ो
'सुमीता हो। इसऊे सिवाय ऐतिहासिक दृष्टि से या विपयद्ृष्टि से
पूल मात्र देखने वालों के लिये भी यद्द 'परित्रिष्ट उपयोगी होगा।
चौय परिशिष्ट में दो फोष्टक हैं. जिनमें क्रमश. अ्वेताम्बरीय
दिगम्बरीय उन कम विषयक ग्रन्थों का संक्षिप परिचय ,कराया
वाया है जो भव तक प्राप्त है या न होने पर भी जिनका परिचय
मात्र मिला है। टस परिशिष्ट के द्वारा घ्वेताम्बर तथा विगम्वरए के
कमं साहित्य का' परिमाण ज्ञांत होने के उपरान्त इतिहास पर/भी
यहुत कुछ प्रकाश पढ़सकेगा। ' ५ ५ के ˆ} ण
इस तरह इस प्रथम कर्मगन्थ के अनुवाद को विशेष” उपादेय बर्नाने
नह लिये्सामग्री, शक्ति और समय के अनुसार कोशिश की गई है।
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