श्रावकाचार की सच्ची कहानियाँ | Shavakachar ki Sacchi Kahaniya
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
भुवनेंद्र - Bhuvnendra
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श्री प्रभाचंद्राचार्य - Shri Prabhachandracharya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सच्ची कथायं | ७
वह कमखश्री नामक आर्थिकाके पास पहुंची
उन्होंने अनन्तमतीको उत्तम आविका समझ कर
अपने पास रख छिया।
इसके बाद पुत्री अनन्तमतीके शोकका विस्म-
रण करनेके लिये प्रियदत्त सेठ बन्दना भक्ति
करनेकै निमित्त अयोध्या पहुंचे । वहा अपने से `
जिनदत सेठके घर ठहरे । वे संध्या समय पहुंचे
थे। राज्िमें उन्होंने अपनी पुत्री अनन्तमतीके
हरणकी चर्चा की । सेठ प्रात!काल होनेपर घन्दना
भक्ति करनेके लिये चले गये, इतनेमें कमलश्री
आयधिकाके यहांसे अनन्तमतीको आंगनमसें रोरी
ग्रुलाल आदिसे चौक पूरनेको बुलाया और चौक
पूरकर वापिस चली गई। स्नान एवं पूजनादिसे
निबत्त होकर सेठ प्रियदत्त आऑगनमें चौकको देख
अनन्तमतीका, गहरी सांस लेकर. स्परण करने
लगे तथा अश्रुपात करते हुये गद्गदू चचन बोले---
“সিজন यदह घरकी शोसा बहा है उसका सुभे
दशन करा दीजिये । , ह
इसके बाद पुत्री अनन्तमती ओर पिता प्रिय-
दत्तकी परस्पर भेर इह ओौर -जिनदत्त सेने बड़ा
आनन्द मनाया ।
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