जैन धर्मामृत | Jain Dharmamart

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Jain Dharmamart by सिध्दसेन जैन गोयलीय - Sidhdasen Jain Goylia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ १--द्रन्यलिगी ( आल ज्ञान रहित ) २०-भावलिंगी ( आत्मन्नानी ) २-स्थभाव--- १---सरलऊ स्वसाव ( त्रियायथ की एकता ) २-कुरिख स्वमाव ( त्रियाग की विपरीतता ) २-- कषाय-.- १--मन्द £ थाडी ) २--तीत्र ( अधिक ) २ -मे।दनीय--- ेु १-- दर्शन भाइनीय ( दर्शन गुण का घाते ) २---वारित्र मेहनीय ( चारित्र गुण के घाते ) २--नाम ऋषभनाथ--- १---#घमनाथ २---आदिनाथ ( कैंशरिया भगवान ) २-- नाय पुष्पद्‌ त- ९---पुष्पद तनाथ २- विधिना २-- मन -- १--्रव्य सन { शरीरं रुप ) २--भाव मन (आत्मा रुप )




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