कर्मवाद और जन्मान्तर | Karmwad Aur Janmantr
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छमैवाद कौ युक्ति ~
इस निराशा-साहिल से सजा हुआ ই। इसका फल यदह हमा
है कि चिरमचलित दुःख-वाद् ( 70४७7501) सर्वग्रासी
नैराश्य के घने आँधेरे में परिणत होकर यूरोप के विशाल
आकाश में विराजमान हैं ।
यूरोप के दशनशात्र ने भो जगत् कौ इस विपमता की
आलोचना की हैं। जिन दाशनिकों ने इसकी छान-बीन की
ই इनमें लाइवनिदज़ ( 16०1४ ) और कंट ( ६४16 ) का
मत चिशेष रूप से उल्लेखनीय है। लाइवनिट्ज़ कहते हैँ कि
सृष्ट पदार्धसात्र ससीम होगा; क्योकि सृष्टि कहते ही सीमा
का ज्ञान होता है। सीमादीन सृष्टि हा ही नदीं सकती ।
श्रतएव जीव जव सृष्ट पदार्थे है तव वह भी ससम हन्ना ।
जहाँ ससीम हुआ तहाँ असंपूर्ण होना ही पढ़ेगा । श्रैषर जीव
जब असंपूर्ण है तव पाप करना उसके पक्ष में निश्चित हैं;
शरोर पाप का फल दुःख वना वनाया है। अतणएव जब सृष्ट
पदार्था से ही संसार चना ই तव उस संसारम दुःख ते रगा
ही। जगत में दुःख होनेसे यह सिद्धांत स्थापित करने की कोई
युक्ति नदीं रद जाती कि सर्वशक्तिमान् सवतः. पृ परमेश्वर
ने इस अगत् क नदीं वनाया रै ।
लाइवनिट्ज़ ने जितनी वाते कही हं उनमें यदी दिखलाया
है कि ईश्वर-सृष्ट जगत् में दुःख को स्थान किस प्रकार मिला
हैं। किंतु उन्होंने विपमता का क्या समाधान किया ९ सभी
जीव अपूर्ण हैं । तब कोई-कोई, अल्पबुद्धि के वश होकर और
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