कामायनी | Kamayanee

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Kamayanee by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त्रता स्वय॑ देव थे हम सब, तो फिर क्यो न विश्वेखल दोती सषि, अरे अचानक हुई इसी से > कड़ी आपदाओ की बृष्टि। 31 राया. सभी कुदं गया, सधुर तस हमद. खर बालाओं का श्रंगारः उषा ज्योत्स्ना सा यौवन-स्मित्‌ हे» मधुप सदश निश्चित बिहार | ১২৭ भरी वासन-सरिता का वह केसा था मदमत्त_प्रवाहु, लोक ऊन अलय-जलधि मे संगस जिसका देख हृदय था उठा कराह।” 23. “चिर किशार-वय, नित्य विलासी) ৮ सुरभित जिसस रहा दिगंत, आज तिरोहित हुआ कहाँ वह मधु स पूणं अनंत वसंत ? २, कम ्स॒मित कुला मवे पुलकित प्रसलिगन हए विलीनः; सोन हुई है मूच्छित ताने शरीर न सुन पड़ती अव वीन। + २




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