सूरदास : एक अध्ययन | Soordas : Ek Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूर का कथा-संगठन १७ सूर ने दशमस्कंध को सामने रखकर दी सुगठित रूप से पनी सामग्री उपस्थित की थी | जब उन्हें भागवत के रूप में उसे उप- स्थित करना पड़ा, तब उन्हें सारे स्कंध लिखना आवश्यक थे। परन्तु इन स्कंघों की सामग्री उनके लिये महत्त्वपूर्ण नहीं है : (१) उनकी रुचि कृष्ण में ही विशेष थी । (२) इन स्कथों में ज्ञानविज्ञान-सम्वंधी नीरस सामग्री भरी पड़ी थी | उसका बहुत-सा भाग सूर के आध्यात्मिक सिद्धान्तों से मेल नहीं पा सकता था। इसी से हम देखते हैं कि सूर ने भागवत के महत्त्वपूर्ण ११ वें स्कंध की सारी सामग्री ही हड़प त्ी। जहाँ-जहाँ अन्य स्थलों पर उन्होंने आध्यात्मिक भाव रखे हें, वहाँ-बहाँ उन्होंने अपने मत को ही रखा हे । उत्तरा कृष्णकथा भी उनके लिये महत्त्वपूर्ण नहीं थी। अतः उसे मी अत्यंत संक्षेप में लिखा गया है । अन्य स्कंधों में भा वड़ी-बड़ी कथाओं को एक दो छदो मे कह कर काम चलाया | इस अत्यंत संक्षेप से कहने की प्रवृत्ति में नीरसता, काव्यगुणहीनता, इतिवृत्तातमकता का चआः जाना आवश्यक था। फिर भी जहाँ-जहाँ उनके मन के प्रसंग मिलते गये, वहाँ-वहाँ सूर ने पद के रूप में कथा लिखी जैसे भीष्मग्रतिज्ञा, रामकथा आदि । - ₹হ) सारे भागवत का श्रनुवाद्‌ महत्‌ कायं था ओर ठलती उग्र में सूरदास उसे नहीं कर सकते थे । वह अपनी अक्षमता जानते थे। उनकी रचि भी उस्र नहीं थी। वे पौराणिक नहीं थे। भक्त थे” कबि थे। अतः इतिवृत्तात्मक पौराणिक कथाओं को विस्तार-पू्वंक लिखना उनका उद्देश्य नहीं रहा | , ॐ) भागवत के एकादश स्कंध पर सुवोधिनी टीका भी है। इसी से सूर ने इस स्कंघ की सामग्री नहीं ली। वे अपनी सीमाएँ जानते थे । सुबोधिनी के दशमस्कध की टीका मे जिन सिद्धान्तो




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