संस्कृत पत्रकारिता का इतिहास | Sanskrit Patrakarita Ka Itihas

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Sanskrit Patrakarita Ka Itihas by राम गोपाल मिश्र - Ram Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५) से मैं अनेक बार उपक्ृत हुआ हूँ। आप दोनों का आसार प्रकट करने में आनन्द का अनुभव करता हूँ । दिल्‍ली में प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन के लिए सतत्त प्रेरणा देने वाले विश्व- विश्वुत विद्वान्‌ प्रो० रसिक विहारी जोशी, आचाये तथा अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, दिल्‍ली विश्वविद्यालय, दिल्‍ली का मैं बहुत ही हृदय से आभारी है। अत्यधिक व्यस्त रहने पर भी पुरोवाक्‌, जिसे मैं अपने लिए सिद्धवाक्‌ मानतां हैँ, लिखकर मेरे ऊपर अपर अनुग्रह किया है। उनके प्रति हादिक आभार प्रकट केरना अपना पुनीततम कतंव्य समझता हूँ । इस कार्य को मैंने बड़े ही धैर्य और निष्ठा से किया है। इस कार्य में परिश्रम तथा धन अधिक लगा है परस्तु इस परिश्रम में मुझे आनन्द मिला ह । प्रकाशन के समयमे गृह कार्यो से सवंथा मुक्ति एवं सहयोग प्रदान करने वाली पत्ती श्रीमती आशभा मिश्राकवा भी उपकृत) अग्रजकल्प डा० मधुसूदन मिश्र एम०ए०,पी-एच्‌ ०डी ०, उपनिदेशक, राष्ट्रीय संस्क्रृत संस्थान दिल्‍ली का मैं बहुत ही हृदय से ग्राभारों हुँ जिनसे स्वेच्छा से सतत परामश करता रहा हूँ। इयाम प्रिटिग एजेन्सी के श्रक्षर संयोजक विधि चन्द श्रौर रामधनी को धत्यवाद देता हू, जिन्हौने लगन के साथ दीघर प्रकाञ्चन मे सहयोग दिया है। यह कार्य प्रेस के मालिक श्री शाम लाल की मैत्री रो समय पर हो पाया है । उनकी प्रगति की कामना कर्ताहं ओर उनके सहयोग के लिए घत्यवाद देता हूँ । भारत के प्राय: सभी विश्वविद्यालयों के पुस्तकाजयाध्यक्षों ने मेरी भरपुर सहायता की है। इसी प्रकार काशी नागरी प्रचारिणी सुभा, सरस्वती भवन तथा विश्वनाथ पुस्तकालय काशी के अधिकारियग्रों का साझ्जलि प्रणाम करता हू, जिन्होंनें मेरे साथ स्वयं कार्य कर निष्काम कमें को सार्थक किया है । काशी ऐसी नगरी है जहाँ से प्रथम सस्कृत पत्रिका निकली तथा संख्या में भी काशी आज तक अग्रणी है। इनके श्रधिकारियों के प्रति आभार प्रदर्शित करता हूँ। अपनी अल्पमति से ययथासाध्य प्रयास एवं सीमित साधत्तों का उपयोग फर यह पुस्तक सस्कृत के मचीपियों से कर-कमलों मे है। इस विशाल कार्य क्षेत्र में मैने अनेक सम्पादकों के कृतित्व को प्रकाश में लाने वग प्रथम उपक्रम किया है । तनुवागूबिभव होने पर भी यथेष्ट विवेचन करने का प्रयत्त किया गया है। संस्कृत तथा संस्कृतेतर पत्र-पत्रिकाग्रों में प्रकाशित बाइसय का सर्वेक्षण प्रस्तुत पुस्तक मे अर्थाभाव के कारण नहीं दिया जा रहा है।




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