पत्र व्यवहार संक्षिप्तिकरण तथा बाजार भाव | Patra-vyavhar Sankshiptikaran Tatha Bazar Bhav
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११९,
(७) पत्र का विपय---
यह् पत्र का प्रधान अग होता है ओर सम्बोधन तथा अभि-
चादन के नीचे की पंक्ति में बाई ओर धशिये से कुछ ह॒ठ कर
आर्भ किया जाता है. । इसके ३ भाग किये जा सकते हैं:--
(३) प्रारस्मिक भाग,
(२) मुख्य विपय,
(३) अन्तिम भाग ।
प्रत्येक नई बात नये वाक्य संड में लिखी जानी चाहिये।
नवीनतम शैली के अनुसा। आरम्भ से ही अपना प्रयोजन प्पष्ट
रूप से लिखा जाना चाहिये । यदि किसी के पत्र का उत्तर लिखा
जा रहा है तो प्रारम्भिक भाग में पदिले पत्रों का प्रसंग भी
लिते द्व । यदि उस विषय मे पिले कोई पत्र व्यवहार नहीं
हुआ हे तो पद्दिलि बहुत ही सुन्दर भाषा में प्रेष्य का ध्यान
आफऊर्पित करना चाहिये । पत्र की भूमिका सरत ओर स्वाभाविक
होनी चाहिय जिससे श्रसावधानी न दिखाई पड़े । वाक्य इस
प्रकार के न होने चाहिये जिनसे अभिमान तथा अशिप्टरता ४कट
होती हो । मुख्य अंग बहुत ही साफ, प्रमाण सहित, अथ पूर्ण और
प्रभावशाली होने चाहिये । भन्तिम भाग मे विपय का मन्त
होता है.। वह सभ्यतापूर्ण एक या दो लाइन में संक्षिप्त रूप मैं
होना चादिये । एवं फालिकः श्रद्ध बाक्यों को भी जहाँ तक हो
सके बचाना चाहिये । संक्षिप्त करके तारीख लिखने का चलन
न करना चाहिये।
(६) पत्र का श्रन्तिस मश्ंसात्मम भाग--
यह् श्यन्तिम वाक्य खंड के नीचे दांई तरफ उर्पर की तारीख
के सीध में लिखे जाते ६ और सम्बोधन के अनुसार प्रयोग होते
हूं। साधारणतः, व्यवसायिकपणनों में हपा कांक्षी? या कृपा
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