पत्र व्यवहार संक्षिप्तिकरण तथा बाजार भाव | Patra-vyavhar Sankshiptikaran Tatha Bazar Bhav

Patra-vyavhar Sankshiptikaran Tatha Bazar Bhav by श्रीनारायण श्रीवास्तव - ShriNarayan Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११९, (७) पत्र का विपय--- यह्‌ पत्र का प्रधान अग होता है ओर सम्बोधन तथा अभि- चादन के नीचे की पंक्ति में बाई ओर धशिये से कुछ ह॒ठ कर आर्भ किया जाता है. । इसके ३ भाग किये जा सकते हैं:-- (३) प्रारस्मिक भाग, (२) मुख्य विपय, (३) अन्तिम भाग । प्रत्येक नई बात नये वाक्य संड में लिखी जानी चाहिये। नवीनतम शैली के अनुसा। आरम्भ से ही अपना प्रयोजन प्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिये । यदि किसी के पत्र का उत्तर लिखा जा रहा है तो प्रारम्भिक भाग में पदिले पत्रों का प्रसंग भी लिते द्व । यदि उस विषय मे पिले कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ हे तो पद्दिलि बहुत ही सुन्दर भाषा में प्रेष्य का ध्यान आफऊर्पित करना चाहिये । पत्र की भूमिका सरत ओर स्वाभाविक होनी चाहिय जिससे श्रसावधानी न दिखाई पड़े । वाक्य इस प्रकार के न होने चाहिये जिनसे अभिमान तथा अशिप्टरता ४कट होती हो । मुख्य अंग बहुत ही साफ, प्रमाण सहित, अथ पूर्ण और प्रभावशाली होने चाहिये । भन्तिम भाग मे विपय का मन्त होता है.। वह सभ्यतापूर्ण एक या दो लाइन में संक्षिप्त रूप मैं होना चादिये । एवं फालिकः श्रद्ध बाक्यों को भी जहाँ तक हो सके बचाना चाहिये । संक्षिप्त करके तारीख लिखने का चलन न करना चाहिये। (६) पत्र का श्रन्तिस मश्ंसात्मम भाग-- यह्‌ श्यन्तिम वाक्य खंड के नीचे दांई तरफ उर्पर की तारीख के सीध में लिखे जाते ६ और सम्बोधन के अनुसार प्रयोग होते हूं। साधारणतः, व्यवसायिकपणनों में हपा कांक्षी? या कृपा




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