संत पलटूदास और पलटू - पंथ | Sant Palatudas Aur Patalu Panth

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Sant Palatudas Aur Patalu Panth by राधाकृष्ण सिंह - Radhakrishn Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संतो की परम्परा भौर बावरी पय & किया था, परन्तु उनकी मृष्यु के परा र्‌ यही दोय उनके अनुयायि मे भ्रा गये ये! । कुछ सन्तो ने तत्कालीन दोपो की और ध्यान श्राकृष्ट किया और तसत्त समाज भें फली हुई कुरीतियों का विरोध किया । युन्दरदास ने इसकी शोर भवेत द्या मौर ভুদমী साहव ने तो स्पष्ट ही कह दिया कि कबीर का मार्ग ही छूट गया है' । दे पथो के भी विरोवी थे मौर उन्होने स्वयं भपना पथ नहीं चलाया था / इसी समय रावाह््वामी मत ने अपनो साधना-पद्धति का वैज्ञानिक ढेग से विश्लेषण उपस्थित किया जिसमे दा्गनिक स्पष्टता के साथ-साथ साधना की भो सरलता है । इधर पाइचात्य पमाज की तुच्चवा में भारतीय सख्यज के कुछ दोष स्पट्टतया परिलक्षित होने लगे । फलरवल्‍्प उन दोपो को दूर कर उसमे आधुनिकता ताने के लिये प्रथत्व प्रारम्भ हो गया ॥ राजा राममोहनराय तथा स्वामी दयानन्द ने परम्प रात्त धामिक तथा सामाजिक अघ-विश्वायों के विस्द्ध प्रचार किया तथा सतन्‍द को भी प्रभावित किया । जो सत-साहित्य स्तवियो की निन्दा ते भरा पडा था उभे प्ियो ओ पुरषो जैस अ्रविकार दिया गया सौर साधा क्षेत्र मे उनका समाम भ्रधिकार माना पया । संते साधना एक्ययिनी थी ! उसमे मनुष्य के पूर्ण विकांस की कोई व्यवस्था नहीं थी। संत कबीर तथा दादूदयाल ने मनुष्य की भीतरी शक्तियों के विकास के लिये नाता प्रकार के साघतों का प्रयत्त किया था, फलदः पथ-निर्भार की भावना से इसकी उन्नति मे वाधा उत्पन्न हुई, परन्तु इस काल मे यद प्राचीन भावना पुनः जाएत दई प्रौर सावनः ऊ साय जीवग के प्रत्येक क्षेत्र में इसका प्रवेश हुआ । इस काल गे व्यक्तित्व के विकार पर विशेष ध्यान टिया गया तथा विचार में, स्वतन्त्रता भी भरा गई । बुद्धिवाद के सहारे कुछ लोगों ने नास्तिकता को प्रोत्साहन दिया । कुछ सम्प्रदायों से व्यवसाय भी प्रारम्भ कर दिया । महात्मा गावो तथा स्वामी যালনীণ নী भ्पने रवतन्त्र धामिक विचार प्रगढ किये और किसी पथ या सप्पदाय की स्थापना नही की। महात्मा गादी ने पूर्ण मातव जीवन के श्रां कयो जनता केः खामने रदषा श्रौर जीवनके प्रत्येक क्षेत्र मे धर्म का समस्थय किया + न आधुनिक मतो के कारणा विचादस्वतय, निर्भा कता, विश्व प्रेम, हिसा, विश्व दान्ति एव विद्व नायरिकता जैसे मेँ स्तिक गुणों को पनन की एक मार पमः परेरर्य मसी 1“ गि -- पपय १. वाबोर को विचार धारा--त्रिग्रुशायत | पृष्ठ ४४० २० उत्तरी भारत की संत परम्परा पृष्ठ ६३६ 9. मूठ! पंच जात सब म्पूटा कहा कवीर सो सारग छूटा घट रामायन ४---संत्-काव्य । झाचार्य परशुराम चतुर्वेदी प्रष्ठ १६




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