भूदान यज्ञ (वर्ष-15, अंक 1-2) | Bhoodan Yagya (Varsh-15, Ank-1-2)

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Bhoodan Yagya Varsh-15 Ank-1-2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ * वाराणसी मे विनोवा माद्री सुमह € মি বাব্যশমী। प्रयै स्टेशन पहुँची दो सबसे पीेवाले तरीषठदे दर्जे के हिन्वे में खिड़की के प्राप्त ठे इए मगन- मन बाबा फी उंगलियाँ धीरे-घौरे ताब दे सदी षी) प्रयत छुदा रहे ये सुबह-युपह शान्ति, करुणा धौर काव्य के संप्रम-स्वरूप इस उ्पत्तित्व के दर्शन करके । दुनिया को भाज दिपम प्रीर विध्वंध्रक परिस्थिति से मुक्ति की दिशा देनेवाला ब्यक्तित करुणाका सागर भौर ऋ्रँतिका उपासक तो है ही, लेकिन उससे 'जौदन की हर उरंग काव्यमव भी है। तभी चो उँगचिया वप्त सयवद्धः नाचती रहती हैं, कष्ठ से गौमी-थीमी गुतगुताहद को प्द्ि, निकलती:रहती है । घ मिर्ष तीन दिनों पूरे सूचना मिली थो कि बावा काशी होकर गया जायेगे । 'सुप्रीम अमाप्डरः क्रािरौ निर्णय प्रपते हाय मे रखता है, उसमे 'इक/ (भगर ) का कोई स्थान नही होता, यह हम जानते 1 হারা > मे प्रपने उस দিবার বা उपयोग रिया औौर मुजफ्फरपुर, वड़हिया, नवाश होकर गया णाने का कार्यश्रम रह कर दिया। इच्छा हुई 'काशी-दशंन' की, “मित्र-मिलन' » की, भौर आ गये । वावा काशी भा रहे हैं, इस तिमित्त से कुछ कार्यत्रम झटपट तय किये गये। यद्यपि दशहरे.को छुट्टियों भौर विभिन्न प्रकार के प्रायोजनों के कारण समय उतना भनुकुल भेदौ থা; লগিন उत्तरअदेणदान का জনক है, भरावा मे संगठन कौ योजना, रो थावा के प्रायमन का मरयूुरलामनेने कौ चेष्टा करनी ही दे। दाीपं्रम वन गये, कई एक) * लेकिन बावा ने पहुंचते ही पूछा, “ईम्परूर्पानादनी হব ' हैं ?”' “हालत अच्छी नहीं ।” जवाब पित्ता 1 तो हम भाज ही उन्हें * देखते ,जायेंगे।” वावा ते कहा }, घटना सुनी „ यौ कभी भीरेद्‌दा . से कि पवनाई भाथम * मे कुछ छोग बावा से मितने गये, लेकिन वे खेद में काम कर रहे थे 1 धटो इतजार किया, + बापिक झुक : १० रुछ विदेश में २० रुण्; या २५ ध चाकन) पङ्‌ भवि २२० पै বিকিন বাৰো मै उनको भोर ध्यान हो नहीं दिया। और ঘা देख হাটু ক্ষি यादा मिलन केलिए दासौ भे हैं, भौर यहाँ धाने के वाद क पहता कायरम है-- सोगशथ्या पर पड़े हुए सस्पूर्णानन्‍्दजी को देखने जाना। व्यक्ति के विद्र षप, प्ाथना की विविध दिशाएँ, लेकिन जीवन- অনা का एर श्रखण्ड कम, जिषे मानबहृदय की भतुल गहराई झोर विराट ब्याएकता, दोनो राप-साथ ! सवं सेवा संघ के कार्यसटापरों से परि. चारिक दंग की चर्चा में बावा ने चोध दिया, भाव दिया, श्रेर्या शोर प्रोत्याहन दिया, लेकिन सबसे अधिक प्यार दिया । बच्चे उसकी ववापौ-पिखायौ ध्यान, भक्ति, ज्ञान और, कर्म की युद्राघ्रो को जब देखिये तव दृह राते रहते हैं। डा« सम्पूर्णातनद से ४ दजे शात्र को मिले दी देर तक उनके दोनों हाथ भपने हाथो में बामे रहे, फिर मब्ज देखी, डाक्टर से हाछचाछ पूछा, भोर चलते-चलते शा० सम्पूर्णानन्‍द से कहा, “काशो मे कोई काम नही था, मिलने ग्राया घा, तो यहाँ भाषके पाश्व भाया। परमात्मा श्रापको शान्ति दे, पी भाध॑ना दरता हूँ । जय जयतु॥” करीय- करीब बैसुध-से डा० सम्मूथविन्द भव जीवन का आछिरी भ्याय पूरा कर रहे हैं। पहनें कभी-कभी छुलती थी, होठ कुछ कॉपते थे, सेकित ध्रादाज नहीं निकल धावी थी, किती प्रकार कहं पयि, ५, .वडी. पा...) र प्रकतूवेर फो हारों श्रोवाभ्रो के दोच टाउठ हाल के मैदान में पूरे एक पट़े का प्रदचन । वावा उत्तरप्रदेश में भाते हैं. तो अपनी 'सूदम! को मर्यादा से बाहर चने जाते हैं। विसपर भाज थाघी-जयन्ती | कहा कि यहू झात्म-परीदाण का दिन हैं। प्पनी झात्म- पह्ौक्षा करते हुए भपने कर्तृत्व वा तरिविधः विभाजन कर दाला--“जो बर भ्रच्छा फर অধ, বাহু ক नाम के प्रभाव से, जो बुछ बुरा किया, वह अपनी कमी से, भौर थो बुछठ नहीं বি নু, ২২৯ [বহি ক টি হিল উর की स्वर प्र] स्न नन ५९ कर सका, वह भगवान को अर्जी উই ( पुरा भाषण धयते भंक मे पढ़ें । ) घाम को काशी ঈ খিতানী শী সনু नागरिकों की युद्धकात के समय वाराणसी के मेयर ने पृद्धा, গ্যাঘী के बाद इस देथ का - शरदा छौ है नहीं, इसलिए एकता शरोर समग्रता का पूर्ष , भभाव है। गया ऐसा कोई देन्द्र हो सकता है ?” शक मे गहा, भागे धानेदाला जमाना गण-सेवकत्क का है। तदस्व सेवको दी नमात ही देश की श्रद्धा का केंद्र हो सकती है, महानसे-महान व्यक्त भी नहीं। यह्‌ सवं सेवा संघ है तो छोट जमात, तेकिते तरस्य दको कौ है । उम्क़ी दक्ति सव लोग वदारय प्रर मिदर उते देण कौ दा या দীন মাহী |, प्रकनूवर को बावा ने प्रदेश के तथा पूर्वी जिलों के बुछ कार्यकर्ताओं वो (दाराणपी भोर प्रोपौ वितो के भविक चे) पद्योपिति करे हए ध्यय पर भोर दिया ौर बहु, “हमारे वापंकता षरला, कए, प्श, घानी के पग्रेते में इस तरह उलमे; रहते हैं कि दे कोल्टू के बैठ की तरह हो गाते हैँ + जिम्रुदी बडी जिमोदारी है, उसके लिए उतने हो प्रधिक प्रध्ययव की जरूरत है। ' १ আনজী 'মানবাহীতে। ধা লা ঘাযাশরীয संख्श्त विश्वविद्यालय में हुई) थावा জা १०० डिद्ी ज्वर हो प्राया था, फ़िर भी দহ गये श्रौर झ्ाचायंवुल डी दिखा वा निर्देश भसे षु झ्ाचायों को राजदीति ते তা भौर मत को ग्ीमामो से ऊपर उठने वी सलाह दी 1 টা হাথী वादा की श्रद्धा भौर भाण वा केंद्र है) उनको परी भाश है हि यहाँ प्राचार्युल भौर प्रदेशदान वी হালি अ्वट होगी 1 “रात को घदते-चसते लूफान' के भारा/ घक को प्रति ले तूफानी” ग्रलामी देवर विदाई दी । বাজ চা দো বাথ वर्षा हो বাঘা) वादाशया' फी শী (4 ছায়া সব ঈ ददा षर्ेकि षि वाशी प्रायेंगे ! राशी




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