गृह नक्षत्र | Grah Nakshatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.42 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिंश्व विधान जी राधास्ण भीतिक तथा रासायनिक नियम उनम लायू नहीं होते । श्रमेक ताराश्रों का श्ाफार परिवर्तित होता रहता है । कभीकमी याराश में अकरमाद् नये तारे १०४०८ निकल याते हैं जो 0 यगे के हातें हैं | इन सभी बाता को ध्यान में रत कर विरयात भारतीय ज्योतिपी चन्द्रशे्र ने यह सिद्ध किया है कि ताराश्या के श्राकास्तापमान इत्यादि श्राधुनिक सापक्तिक भीतिक शाख्र ए८1200४11 शिफडाए5 के यनुवूल दें 1 मीचे लिसी सारिणी मे ऊछ प्रमुग्ग ताराद्ं के सापेत्त एवं निरपेच्त स्थूलत्व परसिगिकला में उनरी दूरी रंगायलि यर्ग तथा व्यास दिये हुए हैं । कस सापेक्ष निरपेक्त पस्िक्ला रंग। गा स्थूलस्व स्थूलल रिपिक्ला रंगापलि १ कि ्र्य नर ७ ड० जद ५ प् ्रार्दी घ8 ०1ु8056 ०६०... -र६£ | २५६ २ रा््रिशी 21तक02120 श०६ -०्र ७. हम ३२६ स्वाती 21010105 ० रु न०्र श्र५ हक रद ज्पैष्ठा #.0 8765 श्श्र. -१७ रद श्र... है फत ०० लुब्यक 510105 न ११८ जहर र७. ८. श्रमिनितू द्रव ० १४ ण्घ प्र द. २० दूरवीक्षण यंत्र की सद्दायता से आकाश में श्य तो श्रनेक नीहारिकार्एँ ऐप०७णांब्रद देती गई हैं पर उपदानयी तथा. कालपुरुप मडल की नीहारिकाएँ तारास्तवक 8181 ण्।लाछे के नाम से पहुत दिना से प्रसिद्ध हैं । श्नेरी रात को इन्हें विना किपी यन के देख सकते हं। दूरवीक्षण यम से द्सेक तारास्तयक जिनमे साकाश गया भी है वास्तय में तारायों के सघन पुंज के रूप से दिग्ताई पड़े |. पर श्रनेक तारास्तवक यति शक्तिशाली दूरवीक्षण यंत्र से भी नोदारिका के रूप में दी दिलाई पढ़े। इन नीहारिकार्या को उनके रूप के झ्नुसार दो ब्गों में विमक्त किया गया है-- १ श्रनियमित नीदारिकाएँ रे कुतल 5फ020 नीददारिकाएँं | श्रनियमित नीहारिकाद्ों की रगायलि से थे जलचन तथा दीलिय्रम के चमफीले समूह-जेसी दीस पढ़ती हैं। झुत्तल नीदारिकाद्धां म कुछ की रगायलि हो लगभग इसी प्रकार की हैं पर उनमें पदार्थ श्रयेक्ाइत धधिक सघन रूप में हैं । इन्द श्रदायलि नीदारिकाएँ एएदप८८५/ 2प०9पाबड कहते हैं | ये एक सूर्य तथा उसकी अद्दावलि के प्रारंभिक रूप हैं पर अनेक बुतल नीदारिकाद्ों की रंगावलि 0 9 & 5 इत्यादि वर्म के ताराद्यां ये सग्मिथण ये समान है ।. चार्पिक लम्पन द्वारा १००० प्रताश वर्ष दूर तक वे तासतों
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