महाभारत में राज्य व्यवस्था | Mahabharat Mein Rajya Vyavastha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ কাজয্মাডল হন उसका महत्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र की भाँति महाभारत भी भारत मे राजनीति के अध्ययन- परम्परा की प्राचीनता प्रमाणित करता है, ओर दण्डनीति को विद्या के चार अंगों में स्थान देकर उसके महत्व को स्वीकार करता ই । यह चार अंग है-आन्वीक्षिकी, त्रयी, वात्तपं ओर दण्डनीति।' ऐसा ही मत अर्थशास्त्र एवम्‌ मनु और याज्ञवल्क्य स्मृतियों में भी व्यक्त किया गया है। परन्तु महाभारत के आरण्यपव॑ में केवल त्रयी, वार्ता और दण्डनीति का ही उल्लेख है।' प्राचीन मानव, बाहेस्पत्य तथा ओऔद्यनस विचार-धारा के अनुरूप यहाँ भी आन्वीक्षिकी को स्थान नहीं दिया गया है। स्पष्टतः महाभारत आन्वीक्षिकी की अपेक्षा दण्डनीति को अधिक महत्व देता है, क्योकि भौतिक जीवन की सफलता दसी के आधित है | অন্ত ग्रन्थ दण्डनीति को अध्ययन का स्वतंत्र विषय मानता दहै] इसके अतिरिवत वह दण्डनीति; वार्ता ओौरत्रयी के घतिष्ट संबंध को भी मान्यता देता है। दान्ति पर्वं मे दण्ड की परिभाषा इस प्रकार की गई ই दण्डेन सहिता द्यषा लोकरक्षणकारिका । निग्रहानुग्रहरता लोकाननु चरिष्यति ॥ दण्डेन नीयते चेयं उन्डं नयति चाप्युत । दण्डनीतरिति प्रोक्ता त्रींल्लोकानुबतंते ॥ পা क न न ज शान्ति, ५९.३३. अर्थशास्त्र, १.५; मन्‌ , ७.४३; याशवल्कय, १.३११. आरण्य, १४९.३१-३१२; १९८.२३. दृष्टव्य, अर्थशास्त्र १.५; नीतिसार, २.३-५. आरणप्य, १९८.२३. दान्ति, ५९.७७-७८. ल +< ० ५ ~~ ~<




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